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वर्ष ३, किरण ७ ]
अहिंसाके कुछ पहलू
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पाहार कैसे मिले १ औरोका खयाल करनेके वे मकान जलाने लगते हैं, वषाभी उन परगोली न दिन में ही नहीं। किन्तु ऐसे वायुमण्डलमें भी चनानेकी सलाह जो गांधीजी देते हैं और कहते हैं मावा के दिल में अपने बच्चोंके प्रति प्रथम अहिंसा कि ऐसी हालतमें चन्द शूरवीरोंको अपने प्राणों का खयाल पैदा हुआ, बादमें स्वार्थ-स्यागका और की परवाह न कर मतवाली जनवाके सामने बलिदानका। उस जमानेमें अगर हम सांप, सिंह, अपना बलिदान देनेके लिये जाना चाहिये, वे ही हाथी आदि जानवरोंसे बचनेक लिये अहिंसाका गांधीजी चोर और डाकुओंके साथ वैसा करनेकी ही प्रयोग करते, वो कौन जाने क्या नतीजा सलाह नहीं देते। उन्मत्त जनता चाहे जितनी आता?
पागल क्यों न हो, आखिर वह समाजकी आज हम मांसाहारके बिना जी सकते हैं। प्रतिनिधि है। किन्तु चोर और डाकू समाजकी एक जमाना था जब मनुष्यको यह विश्वास ही न केवल विकृति ही हैं। इसलिये चारों और डाकुओं था कि मांसाहारकं बिना भी जिया जा सकता है। को समाज-प्रतिनिधि सरकारके द्वारा सजा दिल
आज हम मानते हैं कि वनस्पतिको मार कर खाये वाना जायज माना जाता है। बिना हम जी ही नहीं सकते, और इस लिये हमें वनस्पतिकी हिंसाको हिंसा नहीं समझना
स्वामाविक हिंसाका निग्रह चाहिये।
अषजो लोग लूट-खसोट ही का धन्धा करते हैं, हिंसाके कुछ समाज-मान्य रूप
आजीविकाका दूसरा कोई साधन जानते ही नहीं,
उनके द्वारा जो हिसा होती है वह उसी कोदिकी इसी तरह आज हम सामाजिक जीवन हिंसा है, जो बिल्ली चूहेको मारते समय करती सुरक्षित करनेके लिये प्लंग आदि रोगोंके जन्तुओं है। बिल्लीको यह खयाल तक नहीं होता कि वह का नाश करनेमें कोई दोष नहीं देखते । मच्छरोंको चूहको दुःख दे रही है । इसी तरह खूट-खसोट और खटमलोंको मारते समय किसीको यह करने वाले लोग और मनुष्यका अपहरण करके खयाल नहीं होता कि ऐसा करनेका हमें कोई उसका धन छीनकर उसको छोड़ देनेवाले पठान अधिकार नहीं है।
भी हिंसा-अहिंसाका खयाल ही नहीं कर सकते। गांधीजीने भी इस बातको स्वीकार किया है जिसकी समझ में हिंसाका दोष आ सकता है, कि राष्ट्र-राष्ट्र के बीच अहिंसाका पालन करनेका जिसके मनमें अहिंसाका उदय हो सकता है, उसी इतना आग्रही प्रचार करते हुए भी चोरों और के लिये सत्याग्रहका मार्ग है। हिटलर, मुसोलिनी लुटेरों के उपद्रवस बचनेका और उनपर अहिंसाका और स्टेलिन अपनी संहार-लीला भले ही चलाते प्रभाव डालनेका उनके पास कोई उपाय या हों; किन्तु वे भी अहिंसाको समझ सकते हैं। तरकीब नहीं है। श्रादमी जब मतवाले होकर इतना ही नहीं, किन्तु अहिंसासे प्रभावित भी हो किसी शहर में खून-खराबी करने लगते हैं, या सकते है । किन्तु शेर या भालूके खिलाफ हम