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वर्ष ३, किरण ७]
छोटे राष्ट्रों युद्ध नीति
फौजका अफसर ठहरा। 'Thoirs not to नहीं थे। नसीयवादी चीन देशके लोगोंने तोquestion why, Theirs not to ryake चन्द वीरोंने ही नहीं, किन्तु सारीकी सारी जनता reply.
. ने-जी वीरता बताई है, उसे भविष्यका इतिहास ____ उसको बहुत बुरा लगा। लेकिन उसने सिंध
आश्चर्यचकित होकर अंकित करेगा और उस पर कब्जा तो किया ही। जब उस सरकारको
यह स्वीकार करना पड़ेगा कि दैववादमें ईश्वरयह लिखना था कि सिंध मेरे हाथमें आगया है,
आगया , निष्ठा से कम शक्ति नहीं है। लेकिन केवल बहातो उसने लिपिस लाभ उठाकर अपने दिलका टी से कुछ नहीं होता । धन-जनकी बहुतायत, दर्द भी व्यक्त किया। I have Sind लिखने
खन विज्ञानका वैभव और दंभ-मिश्रित प्रधार्मिक वृत्तिकी जगह उसने लिखा 1 huve Sind, इतनी तैयारी के बिना दुनियामें स्वतन्त्र रहना ही ___ कोई भी अंग्रेज, अमलदार या इतिहासकार, अशक्य-सा हो गया है। और अगर इतनी तैयारी इस अत्याचारका समर्थन नहीं कर सका है। है तो आपस में लड़े बिना चल ही नहीं सकता। चन्द निर्लज्ज लेखक लिखते हैं कि हमारे भत्या- शान्तिके दिनोंमें ये छोटे राष्ट्र आपसमें लड़ चारके फलस्वरूप सिंधके लोगोंको अच्छी राज
। नहीं सकते, क्योंकि बड़े राष्ट्र उनका नियंत्रण करते व्यवस्था मिलगई, यही सिंध लूटनेका समर्थन है !
रहते हैं, और बड़ोंका कभी सवाल ही नहीं युरोपका वर्तमान युद्ध अभी खतम तो नहीं उठता । पोलण्ड बननेके लिये अलबत्ता लड़ हुआ है। अगर फ्रांस या इङ्गलेण्ड आक्रमणके सकते हैं। मगर पोलैण्डकं जैसा अनुभव कोई रास्ते और सख्तीको राजी खुशीसे बेलजियनोंसे भी राष्ट्र दो दफा नहीं ले सकता।। उनका देश ले लें, तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
तब छोटे राष्ट्रोंकी फौज किस कामकी ? हमें हिटलरके राक्षसी कृत्यका समर्थन क्लि-नी
फौजके पीछे जो खर्च किया जाता है, वह किस कुल नहीं करना है। हमें तो इतना ही कहना है
९ कामका ? "कुत्ते की वाकन शिकारीकी मदद कि- 'युद्धातुराणां न नयो न लज्जा'-जो लिये," इसी न्यायस जेक-प्रजा और ऑस्ट्रीयन युद्धातुर होते हैं वे न धर्मको पहचानते हैं, न लोक- प्रजा नॉर्वे पर आक्रमण करनेके ही काम प्रा. लज्जाका नियन्त्रण जानते हैं।
सकती है। एबेसीनियासे लेकर नार्वे तकका इतिहास जो क्या इमस बेहतर यह नहीं है कि ऊपर बताए हम अपनी प्रोग्वोंके सामने बनता देख रहे हैं. हुए राष्ट्रसप्तकको ही लड़नेका सारा ठेका देकर उससे सिद्ध होता है कि युद्धका रास्ता इङ्गलेण्ड बाकी सब के सब राष्ट्र अपनी अपनी फौज फ्रांस, जर्मनी, रूस, इटली, अमेरिका और जापान तोड़कर. या विसर्जन कर, अहिंसक नीतिका के लिये है। बाकीके जितने राष्ट्र हैं उनके लिये प्रयोग करें और अपना एक बड़ा अहिंसक संगठन फौज रखना और न रखना बराबर ही है। युद्ध करक हिंसावादको ही निर्वीय कर अलनेकी करके देशके बहादुर से बहादुर नवयुवकोंका कोशिश करें? युवकोंका नव दिनका बलिदान देकर गुलाम बनो, अब देखना यह है कि इसपर अमल कैसे हो अथवा “Thunk God we Furrender सकता है ? इस हिटलर-युद्धकं अन्तमें दुनियाक ( भगवानको धन्यवाद, हम शरण गय! । कहके सामने सबसे महत्वका सवाल यही रहेगा। बिना खड़े गुलाम बन जाओ। ऐवीसीनिया, स्पेन, - पोलण्ड आदि देशांके लोग कुछ कम बहादुर भवोदय' के वर्तमान मई मासके १०३ अंकमै उद्धृत ।
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