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सास, बीर विषय
म्बर सम्प्रदायको मी मानने वाली थी। 'नमि-निर्वाण' कोई पात्र ऐसा नहीं मिलता जो इनमें से किसी जाति दिगम्बर सम्प्रदायका श्रेष्ठ काव्य है। उसके कर्ता पं. का । ब्रामण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, नामसे ही सब वाग्भट अहिछत्रपुरमें उत्पन्न हुए थे । अहिच्छत्रपुर पात्र परिचित किये गये हैं। इससे मालूम होता है कि नांगौर (मारवाड) का प्राचीन नाम था । * गुजरा- उक्त कथा साहित्य जिस समय अपने मौलिक रूपमें तादिमें श्वेताम्बर सम्प्रदायका प्राधान्य था, इसलिए लिखा गया था, उस समय ये आतियाँ थी ही नहीं। वहाँ पोरवाड़ श्वेताम्बर सम्प्रदायके अनुयायी रहे और जैन साहित्यमें जातिका सबसे पहला उल्लेख मालवा बुन्देलखंड प्रादिमें दिगम्बर सम्प्रदायकी प्रधा- आचार्य अनन्तवीर्यने अपनी 'प्रमेयरन माला' नता थी इससे परवार और जांगड़ा पोरवाड़ दिगम्बर होरपनामक सजनके अनुरोधसे बनाई थी। इन हीरपके रहे। जातियोंमें धर्म-परिवर्तन और सम्प्रदाय-परिवर्तन पिताको उन्होंने बदरीपाल' वंशका सूर्य कहा है।। भी अक्सर होते रहे हैं।
यह कोई वैश्य जाति ही मालम होती है। अनन्तवीर्यका परवार तथा अन्य जातियोंकी उत्पत्तिका समय समय विक्रमकी दमवीं शताब्दी है। जहाँ तक हम
अब सवाल यह उठता है कि परवार जातिकी जानते हैं, जैन माहित्यमें जातिका यही पहला उल्लेख उत्पत्ति कब हुई ? इसका निर्णय करनेके लिए यह है। दूसरा उल्लेख महाराजा भीमदेव सोलंकीके सेनाजानना जरूरी है कि अन्य जातियां कब पैदा हुई? पति और आबके आदिनाथके मन्दिर के निर्माता बिम. अन्य जातियोंकी उत्पत्तिका जो समय है लगभग वही लशाह पोरवाड़का वि० सं० १०८ का है। इनकी समय परवार जातिकी उत्पत्तिका भी होगा। इसके लिए वशावलीमे इनके पहलेको भी तीन पीढ़ियों का उल्लेख पहले उपलब्ध सामग्रीकी छानबीन की जानी चाहिए। है । यदि प्रत्येक पीढ़ीके लिये २०-२५ वर्ष रख लियं
भगवजिनसेनका 'आदि-पुराण' विक्रमकी दशमी जाँय तो यह समय वि० सं० १०२० के लगभग तक शताब्दीका ग्रन्थ है उसमें वर्ण-व्यवस्थाको खूब विस्तार पहुंचेगा। से चर्चा की गई है, परन्तु वर्तमान जातियोंका वहाँ जैन प्रतिमा-लेखोंमें प्रायः प्रतिमा स्थापित करने. कोई जिक्र नहीं है । जैनोका कथा साहित्य बहुत विशाल बालोका परिचय रहता है । दिगम्बर सम्प्रदायकी प्रतिहै। उसमें पौराणिक और ऐतिहासिक सैकड़ों स्त्री मात्रोंके तो अब तक बहुत ही कम लेख प्रकाशित हुए पुरुषोंकी कथाएँ लिखी गई है परन्तु उसमें भी कहीं हैं।
* पहिचानपुरोल्पाः प्राग्वाटकुखशालिनः। बदरीपालवंशाखीयोमधुमविनितः'।
बाहल सुतरचाके प्रबन्ध वाग्मटः कविः ॥ वर्तमान जातियों की रची हमें इस जातिका माम श्री भोकाबीके अनुसार अहिच्छत्रपुर नागौरका नहीं मिला। या तो पह गुम हो गई है या इस प्राचीन नाम था । बोबीके विवेका रामनगर भी महि- नामान्तर हो गया है। पहलाता है, जो प्राचीन तीर्थ है। परंतु वाग्भट जहाँ तक हम जानते है बाबू कामताप्रसादजी जागोमें ही उत्तम हुए होंगे, ऐसा मान पाता है। का एक बोगसा संग्रह और मो• हीराबासनीका जैन