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वर्ष ३, रिण १]
जातियाँ किस प्रकार जीवित रहती हैं !
जब हम इतिहासके अध्ययनको जातीय जीवनका पार जगावेगी ! क्या विजयी लोगोंकी पोखिसी (कार्य सिद्धान्त मानते हैं, तो पण्डितोंकी हम दशाको देख- प्रणालं) पर पुस्तकें लिखने और उनको दुनियाँ भरका कर हमको यह कहानी याद आती है कि एक चीयेजी दगाबाज और चालबाज़ प्रमाणित कर देनेसे ही उस भोजन करने यजमानके घर गये । लड़का भी साथ गिरी हुई जातिकी मोर हो जायेगी ! नहीं, कदापि था। उन्होंने उसपं पूछा कि न्योता जीमनेका क्या नहीं। जब कोई जानि अपने देशमें दुःख पाती है, जब नियम है ? लड़केने कहा कि आधा पेट खाना चाहिए, उसकी कन्याएँ विजयी लोगोंकी लौंडियाँ और उसके
चौथाई पेट पानी के लिए और बाकी जगह हवाके लिए नौजवान उनके गुलाम बनाये जाने हैं, जब उसका रखना ज़रूरी है। नब गैबेजीने कहा- तुम अभी बच्चे मन उसके बों के पेट में नहीं पड़ना और वे भूखसे हो, मलके करच हो । देखो, भोजनका सिद्धान्त यह है त्राहि त्राहि करते हैं, जब उसके धर्मका नाश होता है कि पूरा पेट खाने से भर लो । पानीका गुण है कि इधर- और उसके राजा और पुरोहित विजयी लोगोंकी भर्दली उधर भोजन के बीचम अपना रास्ता निकाल ही लता में नौकर रखे जाते हैं, जब उसकी औरतोंकी इज्जत है । और हवाका क्या है, पाई गई, न भाई न सही। विजयी लोगों की कुदृष्टिमे नहीं बच सकनी और वे ऐसे इसा प्रकार पण्डितगण तर्क और व्याकरणपर लट्ट होत देश में रहने से मौनको बेहतर समझकर ज़हरका चूंट हैं। परन्तु जानाय इतिहासका चिन्ना नहीं करने, पीकर चल बसता है, जब किमी जातिकी ऐसी अप्रजिमकं बगैर न तक चलेगा न विन लिख जायंगे। निष्ठा और बदनामी होती है, तो उसके लिए भाव___ "कौड़ी को तो खुब मेमाला, लाल रनन क्यों श्यक है कि अपने हृदयको टटोले, अपने गुणोंकी परीक्षा छोड़ दिया जातीय इतिहासको जीवित रखना जानाय करे, अपने पाचरणकी जाँच पड़ताल करें और मालम जीवनका उत्तम सिद्धान्त है ।
करे कि वे कौनसे अवगण हैं, जिनके कारण उसकी प्रत्येक जानिका भाग्य उसके गुणोंपर निर्भर है। ऐसा गनि हुई है। क्योंकि जब तक कोई जाति, जो प्रत्येक जानि अपनी निम्मन को खुद मालिक होता है। मंग्याकी दृष्टि पर्याप्त प्रनिष्ठा रखनी हो, लालच, यदि किम! जारि बुरे दिन आ जायें; यदि उसका काहिला, बुदा नीं, इन्द्रिय जोलुपना और बुज़दि में धन दौलन, प्रतिमा, मान-मर्यादा, गज-पाट, धर्म कर्म गिरनार न हो, उसपर नमाम दुनियाँको जानियाँ सब मिट्टीम मिल जाय तो उस समय उप जानिका मिनकर चढ़ पायें, तो भी विजय नहीं प्राप्तकर सकतीं। क्या कनव्य है ? क्या विजयाको गालियाँ देने उगका ऐमी जातिको चाहिए कि उन भीतरी शत्रुओंका मुकाकाम शन जारगा? क्या विजयी लोगोंकी बदी, वादा- बिला कर जो उसके जीवनको धुनकी तरह खा रहे हैं। खिलाफा, बालच या मकारीको प्रमाणिन कर देनेम तब वह बाग दुश्मनांके मामने खड़ी रह सकेगी। उस जातिका मला हो जायगा? क्या विजयाको निन्दा जिमन मन जीना उमनं जग जीना। और ऐसी जानि करनेमें उसके अवगुणोंका पूरा इलाज हो जायेगा' के उद्धारक मिए व्याख्यानानामों और लेखकों, क्या शब्दाडम्बर, वाक्य कौशन और डोंग-इप्पान काम वकीलों. बैरिस्टरों और जोगटाकी इतनी जमत नहीं देगा ? क्या वाक्य-चातुरी और मृदुभाषिता उसका बेड़ा है जितनी साधु मन्तोंकी, जिन्होंने अपनी इन्दियोंपर