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मोक्ष-सुख-[भीम रावणबी
स पृथ्वी मंडल पर कुछ ऐसी वस्तुयें और मन पवन और सुगन्धी विलेपनसे उसे आनन्द आनन्द कर
की इच्छायें हैं जिन्हें कुछ अंशमें जानने पर दिया । वह विविध प्रकारके हीरा, मणिक, मौक्तिक, भी कहा नहीं जा सकता। फिर भी ये वस्तुयें कुछ मणिरत्न और रंग विरंगी अमूल्य चीजें निरन्तर उस संपूर्ण शाश्वत अथवा नंत रहस्यपूर्ण नहीं है । मीलको देखने के लिये भेना करता था, उसे बाग-बगीचों जब ऐसी वस्तुका वर्णन नहीं हो सकता तो में घूमने फिरनेके लिये भेजा करता था । इस तरह फिर अनंत सुग्वमय मोक्षकी तो उपमा कहाँसे मिल राजा उसे सुख दिया करता था । एक रातको जब सब सकती है । भगवान्से गौतमस्वामीने मोक्षके अनंत- सोये हुए थे, उस समय भौलको अपने बाल-बच्चोंकी सुखके विषयमें प्रश्न किया तो भगवान्ने उत्तरमें कहा- याद आई, इसलिये वह वहाँसे कुछ लिये करे बिना गौतम ! इस अनंत सुखको जानता हूँ परन्तु जिससे एकाएक निकल पड़ा, और जाकर अपने कुटुम्बियोंसे उमकी ममता दी जा सके, ऐमी यहाँ कोई उपमा नहीं। मिला । उन सबोंने मिलकर पूछा कि तू कहाँ था! जगत्में इस सुखके तुल्य कोई भी वस्तु अथवा सुख नहीं भीलने कहा, बहुत सुखमें। वहाँ मैंने बहुत प्रशंसा ऐमा कहकर उन्होंने निम्नरूपस एक भीलका दृष्टान्त करने लायक वस्तुएँ देखीं। दिया था।
कुटुम्बी-परन्तु वे कैसी थीं, यह तो हमें का। किमी जंगल में एक भोलाभाला भील अपने बाल भील-क्या कहूँ, यहाँ वैसी एक भी वस्तु नहीं। बच्चों सहित रहता था । शहर वगैरहकी ममृद्धिकी कुटुम्बी-यह कैसे हो सकता है ! ये शंख, सीप, उपाधिका उसे लेश भर भी भान न था । एक दिन कौड़ कैसे सुन्दर पड़े हैं ! क्या वहाँ कोई ऐसी देखने कोई राजा अश्वक्रीड़ाके लिये फिरता फिरना वहाँ श्रा लायक वस्तु थी ? निकला । उसे बहुत प्यास लगी थी । राजाने इशारेसे भील-नहीं भाई, ऐसी चीज तो यहाँ एक भी भीलर्स पानी माँगा । भीलने पानी दिया । शीतल जल नहीं। उनके सौवें अथवा हजारवें भाग तककी भी मनोपोकर राजा संतुष्ट हुआ। अपनेको भीलकी तरफसे हर चीज़ यहाँ कोई नहीं । मिले हुए अमूल्य जल-दानका बदला चुकानेके लिये कुटुम्बी-तो तू चुपचाप बैठा रह । तुमे भ्रमणा भीलको समझाकर राजाने उसे साथ लिया । नगरमें हुई है। भला इससे अच्छा क्या होगा ? पानेके पश्चात् राजाने भीलको उसकी ज़िन्दगीमें न हे गौतम ! जैसे यह भील राज-वैभवके सुख भोगदेखी हुई वस्तुओंमें रक्खा । सुन्दर महल, पासमें अनेक कर पाया था, और उन्हें जानता भी था, फिर भी अनुचर, मनोहर छत्र पलंग, स्वादिष्ट भोजन, मंद मंद उपमाके योग्य वस्तु न मिलनेसे वह कुछ नहीं कह