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अनेकान्त
बीर निर्वावसं.२०१६
है:-सकलकीर्ति रचित संस्कृत पद्यमय चरित्रकी २२ श्रीपाल चौपईकी प्रशस्तिसे भी उसका चरित्र नायक पत्रोंकी प्रति सं०१५६१ मार्गशीर्ष शुका शनिवारको हमारे श्रीपालसे भिन्न ही कोई श्रीपाल प्रतीत होता है। लिखित है। इसमें ७ परिच्छेद और कुल श्लोक संख्या यह रास "दान" के महात्म्यपर कथाकोष ग्रन्थके ८०४ है।
आधारसे रचा गया है, ऐसा अन्यकी अन्त प्रशस्तिसे परमल्ल कविके हिन्दी पद्यमय चरित्रको ६ प्रतियाँ स्पष्ट है । फिर भी मूलग्रन्थको पूरा पढ़े बिना या उमके उक्त मन्दिरमें है । ग्रन्थ प्रशस्तिसे पता चलता है कि आधार भूत कथाकोषको देखे बिना निश्चित रूपस कविके पूर्वज गोपगिरिके राजा मानके मान्य दिन कुछ कहा नहीं जा सकता। चौधरी थे उनके पुत्र रामदासके पुत्र प्रामकरण बरहिया पर्व लेखमें सकलकीर्ति और ब्रह्मजिनदासके के श्राप पुत्र थे और आगरेमें निवाम करते थे । प्रस्तुत गुरु शिष्य-सम्बन्धके कारण चरित्रोंके एक होनेका चरित्र सं० १६५१ श्राषाढ शुक्ला - शु० अकबरके अनुमान किया गया था पर वह ठीक नहीं था, क्योंकि राज्यमें प्रारम्भ किया था।
दोनोंके भिन्न भिन्न ग्रंथ उपलब्ध हैं । इसी प्रकार नेमिकलकत्तेके नित्यमणि विनय श्वे. जैन लायब्रेरीमें दत्त और मल्लिमषण के रचित चरित्र भी भिन्न भिन्न दि० विद्यानंदि रचित चरित्रकी प्रति अवलोकनमें श्राई। ही होंगे । पं० कैलाशचन्द्र जीको प्राप्त सूचियोंमें भिन्न यह प्रति ३२ पत्रात्मक प्राचीन हैं । चरित्र श्लोकबद्ध है भिन्न लिखा मिलता है। नेमिदत्तका तो जयपुर
और ११ पटलोंमें क्रमशः १६८, १३५, १४२, ८२, भंडार में उपलब्ध है ही। पंडितजीकी प्राप्त सूचियोंमें २३३, २१६, २४२, २३१, १४६, १६५, ११५, कुल शुभचन्द्र के नामके माथ साथ भवारक छोटा विशेषण १९०५ श्लोक है । ग्रन्थकर्ताने अपनी परम्पग इस प्रकार लगा है। अब अनुपलब्धदि चरित्रोंम १ नरसेन २ बतलाई है:-कुदकुदान्वय गुणकीर्ति-ग्लकीर्ति प्रभाचंद्र मल्लिभषण ३ छोटा शुभचन्द्र ४५० जगन्नाथ कृत ही पद्मनंदि शि. देवेन्द्रकीर्ति शि० विद्यानदि । ग्रन्थके रहे हैं, विद्वानोंको उन्हें खोजकर प्रकाश डालना प्रारम्भमै कुंदाकुंदाचार्यादिकी कई श्लोकोंमें प्रशंसा की चाहिये। है। पुष्पिका लेम्व इस प्रकार है:"ग्रंथ सख्या २००० । संवत् १५३० वर्षे बैशाख
नवीन ज्ञातसाहित्य चदि शुभ नक्षत्रे। श्री सिद्ध चक्र श्रीपाल चरित्र अब पर्व सूचीमें निर्देशित चरित्रोंके अतिरिक्त ममात ।" कर्त्ताने पूर्व ग्रन्थानुसार रचनेका उल्लेख जितने साहित्यका पोछेसे पता चला है उमका परिचय किया है । पूर्व सूचीमें उल्लिखित दि० वादिचंद्र कृत दिया जाता है । श्रीपाल व्याख्यानकी प्रशस्ति देखने पर ज्ञात हुआ कि उस ग्रंथके चरित्रनायक हमारे श्रीपालसे भिन्न है । कथा
श्वेताम्बर के अन्तमें "इति श्री विदेह क्षेत्र श्रीपाल सोभागी चक्र- १. श्रीपालचरित्र (सं० गद्य):-लोंकागच्छीय ऋषिकेशव वर्ती हवो तेहनी कथा" ऐसा स्पष्ट निर्देश है। रचित (रचनाकाल:-१८७७ आश्विन शुक्ला ४
इसी प्रकार श्वे. विवंदनीक गच्छीय पद्मसुन्दरके बालचर) इसकी प्रति विजयधर्मसूरि ज्ञानमन्दिर