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ফ্রান্স মুক্ষ্মী সুতি শুরা সুস্থ
[.-श्रीमान् बा० प्रजमानजी वकील]
में तुम्हारी जीवात्माके शान्ति स्वरूप और शान गुणमें र भगवानका जन्म विदेह देशकी प्रमिद्ध राज. फरक पारहा है, विषय कषायोंके उबाल उठते हैं और
धानी वैशालीके निकट कुण्डग्राम में हुआ था, यह जीव इन्द्रियोंका गुलाम होकर संसारमें चार जिसको कुडलग्राम या कुंडलपुर भी कहते हैं। आपके लगाता फिर रहा है। अगर वह हिम्मत करे तो इस पिता राजा सिद्धार्थ कुण्डग्रामके राजा थे और आपकी गुलामीसे निकल कर आज़ाद हो सकता है और अपना माता वैशालीके महाराजा चेटककी बेटी प्रियकारिणी ज्ञानानन्द स्वभाव पास कर सकता है । परन्तु विषय थी, जो त्रिशलाके नामसे भी प्रसिद्ध थी। राजा चेटक कपायोंकी यह गुलामी उनकी ताबेदारी करने और उन की दूसरी लड़की चेलना मगध देशके प्रसिद्ध महाराजा के अनुसार चलनेसे दूर नहीं हो सकती, किन्तु अधिक श्रेणिकसे ब्याही गई थी। वीर भगवान ३० बरसकी अधिक ही बढ़ती है। विषय-कषायोंसे कर्मबंधन और श्रायु तक अपने पिताके घर ब्रह्मचर्य अवस्थामें रहे, कर्मोदयसे विषय-कपाय उत्पन्न होते रहते हैं। वह ही फिर संमारके मारे मोहजालमे नाता तोड़, सन्यास ले, चक्कर चल रहा है और जीव इससे छुटने नहीं पाता, नम अवस्था धारण कर परम वैरागी होगये और अात्म विषय कपायोंके नशेमे उत्पन्न हुआ भटकता फिर रहा ध्यानम लीन होकर अपनी श्रात्माकी शद्धिमें लग गये। है। जिस तरह रामचन्द्र जी सीताके गुम होने पर वक्षों बारह वर्ष तक वे पूरी तरह इसी माधनामें लगे रहकर । से भी सीनाका पता पछने लग गये थे अथवा जिस घातिया कोका नाशकर केवल ज्ञानी हो गये। तब तरह थालीके खोये जानपर उसकी तलाशमें कभी कभी उन्होंने दूमरों को भी इस ममाररूपी दुःखमागरम निका- कोई घड़ेमे भी हाथ डाल देते हैं, उसी ही तरह विषयलने के लिये नगर नगर और ग्राम ग्राम घमना शुरु कषार्योकी पूतिके लिये यह जीव समार भरकी खशाकिया। नीच-ऊँच, अमीर ग़रीब मबही को अपनी सभा मद करने लगता है। श्राग, पानी, हवा, धरती, पहाड, में जगह देकर कल्याणका मार्ग बताया। प्रायः ३० सूरज, चांद, मार, झड़ और नदी-नाले श्रादि पदार्थों वर्ष इस ही काम में बिगाये और फिर ७२ वर्षकी श्राय को भी पूजने लग जाता है। नहीं मालूम कौन हमारा में श्रायुकर्म पूरा होने पर इस शरीरका भी मदाके लिये कारज मिद्ध कर दे, ऐमा बेसुध होने के कारण यदि संग छोड़, पूर्ण शुद्ध बुद्ध और सत्-चित्-अानन्द स्व. कोई किसी ईट पत्थरको भी देवता बता देता है तो रूप होकर तीन लोककं शिविर पर जा विराजे, जहाँ उमसे ही अपनी इच्छाओंकी पूर्तिकी प्रार्थना करने लग वह अनन्तकाल तक इमही अवस्था में रहेगे। कभी भी जाता है। अपने ज्ञान गुणसे कुछ भी काम नहीं लेता संसारके चक्करम नहीं पड़ेगे ।
__ है, महा नीच-कमीना बन रहा है और कण-कणसे डर वीर भगवानने स्वयं स्वतन्त्र होकर दमरोको स्व. कर उसको पूजता फिरता है। तन्त्र होनेका रास्ता बताया और इसके लिये अपने परन्तु इस जीवमें केवल एक भय कषाय ही नहीं पैरों पर खड़ा होना मिखाया । कर्मोकी जजीरॉम जकड़े है जो हर वक्त खुशामद ही करता फिरता रहे। इसको हुए विषय-कषायोंके गुलाम बने हुए, बेबम संसारी तो क्रोध, मान, माया, लोभ, रति, अरति, भय, ग्लानि, जीवोंको समझाया कि जिस प्रकार श्रागकी गर्मी हास्य, शोक और कामदेव यह सब ही कपाय सताती है पाकर ठंडा शांत और स्वच्छ पानी गर्म होकर खल- और सब ही तरह के उबाल उठते हैं। कभी धमयरमें बलाने लगता है, तरह तरह के जोश पाकर देगचीमें आकर अपनेसे कमजोरोको पैरों तले ठकराता चक्कर लगाने लग जाता है इसी प्रकार कर्मके सम्बन्ध ऊंचे दर्जेके काम करने और उन्नतिके मार्य