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प्रभाचन्द्रका तत्वार्थसूत्र
[सम्पादकीय ]
त्रामी तक हम उमास्वाति या उमास्वामी श्रा- पूज्यपादका समय विक्रमकी छठी शताब्दी मुनिमित है।
'चार्यके तत्वार्यसूत्रको ही जानते है-, और तीरे वे प्रभाचन्द्र है जिनका उल्लेख श्रवणबेल्गोल 'तत्त्वार्थसूत्र' नामसे प्रायः उसीकी 'प्रसिद्धि है । परन्तु के प्रथम शिलालेखमें पाया जाता है, और जिनकी बाबत हाल में एक दूसरा पुरातन तत्त्वार्यसूत्र भी उपलब्ध यह कहा जाता है कि वे भद्रबाहुश्रुतकेवलीके दीक्षित हुआ है, जिसके कर्ता आचार्य प्रभाचन्द्र है । ग्रंथकी शिष्य सम्राट् 'चन्द्रगुप्त' थे। इनका समय विक्रम सं० सन्धियोंमें प्रभाचन्द्राचार्यके साथ 'बृहत्' विशेषण से भी कोई तीनसौ वर्ष पहले का है। तब यह ग्रंथ लगा हुआ है, जिससे यह ध्वनित' होता है कि प्रकृत कौनसे बड़े प्रभाचंद्राचार्यकी कृति है, यह बात निधिग्रंथ बड़े प्रभाचन्द्र का बनाया हुआ है। प्रभाचन्द्र तरूपसे नहीं कही जासकती । इसके लिये विशेष खोज नामके अनेक प्राचार्य हो गये हैं।। बड़े प्रभाचन्द्र होनेकी ज़रूरत है । फिर भी इतना तो कह सकते हैं कि श्राम तौर पर 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' और 'न्यायकुमुद- यह भद्रबाहु श्रुतकेवलीके शिष्य प्रभाचन्द्रकी कृति चंद्र' के कर्ता ममझे जाने हैं; परंतु इनसे भी पहले नहीं है. क्योंकि उनके द्वारा किसी भी ग्रंथरचनाके प्रभाचंद्र नामके कुछ प्राचार्य हुए हैं, जिनमेंमे एक होने का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। तो पग्लरु-निवामी 'विनयनन्दी' प्राचार्य के शिष्य थे और जिन्हे चालुक्य राजा 'कीर्तिवर्मा' प्रथमने एक दान
प्रन्थति और उसकी प्राप्ति दिया था। ये श्राचार्य विक्रम की छठी और सातवीं उक तत्त्वार्थमूत्रकी यह उपलब्ध प्रति पौने दस शताब्दीके विद्वान थे; क्योंकि उक्त कीर्तिवर्माका अस्ति- इन लम्बे और पांच व चौड़े अाकारके आठ पत्रों त्व समय शक सं० ४८६ (वि० स०६२४) पाया जाता पर है। प्रथम पत्रका पहला और अन्तिम पत्रका है । दूसरे वे प्रभाचंद्र हैं जिनका श्री पूज्यपादाचार्य- दूमरा पृष्ठ खाली है, और इस तरह ग्रंथ की पृष्ठ-मरव्या कृत 'जैनेन्द्र' व्याकरण के 'रात्रेः कृति प्रभाचन्द्रस्य' १४ है । प्रत्येक पृष्ठपर ५ पंक्तिया है, परन्तु अन्तके इम मूत्रमें उल्लेख मिलता है, और इम लिये जो पृष्ठ पर ४ पंक्तियां होनेसे कुल पंक्ति-संख्या ६६ होती विक्रमकी छठी शताब्दीसे पहले हुए हैं। क्योंकि आचार्य है। प्रति पृष्ठ अक्षर संख्या २० के करीब है, और
+देखो, माणिकचनग्रन्थमालामें प्रकाशित एन- इसलिये ग्रंथकी श्लोकसंख्या (३२ अक्षरों के परिमाकरावकाचारकी प्रस्तावना, पृ.१० से ६६ तक। णसे) ४४ के करीब बैठती है। * देखो, 'साउथहरियन निम', भाग दूसरा, काग़ज देशी साधारण कुछ पनला और खुदरासा पृ.८८।
लगा है । लिखाई मोटे अक्षर्गेमें है और उसमें कहीं