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प्रभाधनका तत्वार्यसूत्र
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कारीके कारण न मालम कितने ग्रंथरत्न पसारियोंकी क्रमशः १५, १२, १८, ६, ११, १४, ११,८७,५ दुकानोरर पुड़ियाओंमें बंध बँधकर नष्ट हो चुके हैं !! है, और इस तरह कुल सूत्र १०७ हैं। इस सूत्रमें दश कितने ही ग्रंथोंका उल्लेख तो मिलता है परन्तु वे ग्रंथ अध्याय होने के कारण इसे 'पासूत्र' नाम भी दिया पान उपलब्ध नहीं हो रहे हैं । इस विषयमें दिगम्बर गया है-उमास्वातिके तत्त्वार्थ सूत्रको मी 'दशसूत्र' समाज सबसे अधिक अपराधी है, उसकी ग़क नत अब कहा जाता है, और यह नाम ग्रंथकी प्रथम पंक्ति में ही, तक भी दूर नहीं हुई और वह श्राज भी अपने ग्रंथोकी उमका लिखना प्रारम्भ करते हुए, पथ' और 'विपते खोज और उनके उद्धारके लिये कोई व्यवस्थित प्रयत्न पदोके मध्यमें दिया है। प्रथके अन्तमें-१०वीं संधि नहीं कर रहा है। और तो क्या, दिगम्बर अन्योकी कोई (पुषिका) के अनन्तर-'इति' और 'समासं पदोंके अच्छी व्यरस्थित सूची तक भी वह अबतक तैय्यार मध्य में इसे 'जिनकल्पी सूच' भी लिखा है। इस प्रकार
समर्थ नहीं हो सका; जबकि श्वेताम्बर समाज ग्रंथप्रतिक आदि, मध्यम और अन्तमें इस सूत्रग्रंथके अपने ग्रंथोंकी ऐसी अनेक विशालकाय-सूचियाँ प्रकट क्रमशः दशसूत्र, तत्त्वार्थसूत्र और जिनकल्पी सूत्र, ऐसे कर चुका है । जिनवाणो माताकी भक्तिका गीत गाने. तीन नाम दिये हैं। पिछला नाम अपनी खास विशेषता वालो और इसे नित्य ही अर्घ चढ़ानेवालों के लिये ये रखता है और उसने बा• कौशलप्रसादजीको इस मच बाते निःसन्देह बड़ी ही लजाका विषय हैं। उन्हें ग्रन्थको कोटामे लाने के लिये और भी अधिक प्रेरित इनपर ध्यान देकर शीघ्र ही अपने कर्तव्यका पालन करना किया है। हाँ, मात्र १०वीं संधिमें 'तस्वार्यसूत्र' के चाहिये-ऐमा कोई व्यवस्थित प्रयत्न करना चाहिये स्थानपर 'तत्त्वार्थमारसूत्र' ऐसा नामोल्लेख भी है,जिसका जिससे शीघ्र ही लुप्तप्राय जैन प्रथाकी खोजका काम यह श्राशय होता है कि यह ग्रंथ तत्वार्थ विषयका. सारज़ोर के साथ चलाया जासके, खोजे हुए अन्योका उद्धार भूत प्रय हैं अथवा इस सूत्रमें तत्त्वार्थशास्त्रका. सार हो मके और सपूर्ण जैन ग्रंथोकी एक मुकम्मल तथा खांचा गया है । पिछले श्राशयसे यह भी ध्वनित हो सुव्यवस्थित सूची तैयार हो सके । अस्तु । सकता है कि हम प्रथम सम्भवतः उमा वानिके तत्त्वार्थ___ अब मैं मूल ग्रन्थको अनुवाद के साथ अनेकान्तके मूत्रका ही सार खींचा गया हो। ग्रन्थ-प्रकृति और पाठकों के मामने ग्ग्वकर उन्हें उमका पूरा परिचय करा उमके अर्थ सादृश्यको देखते हुए, यद्यपि, यह बात देना चाहता हूँ । परन्तु ऐमा करनेमे पहले इतना और कुछ असंगत मालम नहीं होती बल्कि अधिकतर मुकाव भी बतला देना चाहता हूँ कि यह प्रथ श्राकारमें छोटा उसके माननेकी ओर होता है। फिर भी संधियों में होनेपर भी उमास्वातिके तत्त्वार्थ सूत्रकी तरह दश 'सार' शब्दका प्रयोग न होनेसे १०वीं संधिमें उसके अध्यायोंमें विभक्त है, मूल विषय भी इसका उसीके प्रयोगको प्रक्षिम भी कहा जा सकता है। कुछ भी हो, समान मोक्षमार्गका प्रतिपादन है और उसका क्रम भी अभी ये सब बाते विशेष अनुसंधानसे सम्बन्ध रखती है, प्रायः एक ही जैसा है-कहीं कहीं पर थोड़ामा कुछ और इसके लिये ग्रंथकी दुमरी प्रतियों को भी खोजनेकी विशेष ज़रूर पाया जाता है, जिसे भागे यथावसर जरूरत है । माथ ही, यह भी मालूम होना जरूरी है कि सूचित कर दिया जायगा।इन अन्यायोंमें सूत्रोंकी संख्या इस सूत्रग्रन्थपर कोई टीका-टिप्पणी भी लिखी गई।