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वर्ष ३. किरण का
धर्माचरणमें सुधार
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कर असजियन को ढूंढने वाले बढ़ते जाते हैं । जब वे होना चाहिए किन्तु धर्मके जाननेके वास्ते धर्मशास्त्रों को देखते हैं कि विद्वान लोग भी निर्जीव थोथी क्रियानोंको ही प्राधार मानना चाहिये । ही धर्म बताते हैं और सुधारकोंको अधर्मी ठहराते हैं। जो विद्वान भाई जैनधर्मके असली स्वरूपको तब जैनधर्म वास्तवमें यह थोथा ही धर्म होगा, जिस- समझ कर वैसा ही सर्व साधारणमें प्रगट करनेका का समर्थन विद्वानों द्वारा हो रहा है। ऐसा देखकर साहस रखते हैं, उनसे हमारा नम्र निवेदन है कि उनकी श्रद्धा जैनकी सरफसे शिथिल होनी जाती है। वे साहस कर सुधारके लिये कमर बांधे। दुनियांके अतः हमको लाचार होकर अब यह कहने की जरूरत लोग नो भाजकल दुनियांकी बातों में सुधार होने के पड़ती है कि हमारे परीक्षा प्रधानी भाई स्वयं जैन वास्ते भी अपना तन, मन, धन अर्पण करनेको शास्त्रोंकी स्वाध्याय कर जैनधर्मके स्वरूपको पहचानें। तैयार हैं, तो क्या जैनधर्ममें ऐसे सच्चे श्रद्धानी नहीं जैनधर्मम नो इस ही कारण सबसे पहले नावोंके मिलेंगे जो धर्ममें सुधार करने के लिये उसके मानने स्वरूपको भलोभांति समझकर उन पर श्रद्धान लाना वालोंकी मान्यतामों में जो विकार भारहा है उसको जरूरी बताया है। चारित्र तो उसके पीछे ही बताया जैनशास्त्रोंके माधारमे दूर कर शाबानुकूल सत्यधर्मका है। और वह ही चारित्र सच्चा चारित्र ठहराया है जो प्रचार करने के लिये खड़े हो जावें और अपने भाइयों के सम्यक श्रद्धान और सम्यक् ज्ञानके अनुकूल हो, विरोधका कुछ भी बुरा न मान उसको हंसते २ सहन जिसपे पारमाकी शुद्धि होकर सका विभाष भाव दूर कर जावें । ऐसे सच्चे धर्मात्मा अवश्य हैं, उन ही से होता हो और असली स्वभाव प्रगट होता हो। इस हमारी यह अपील है। कारण किमीके भी बहकायेमें भाकर विचलित नहीं
महावीर-गीत
[ले०-शान्तिस्वरूप जैन 'कुसुम'] __ तुम थे जगके मीत, स्वामी ! तुम थे जगके मीत । जीवन नौका लिये गुणागर !
विषय-तप्त इस दीन जगत् पर, आये जब तरने भव मागर,
वर्षाया वचनामृत झर-झर, मुदित हुए सब जीव जगत्के, स्पिद हुई भय भीत। कण-कणने पाया नवजीवन, उलट गयी सब रीत । तुम थे जगकं मीत, स्वामी ! तुम थे जगके मीत ॥ तुम थे जगकं मीत, स्वामी ! तुम थे जगकं मीत ॥ कितनी नावे ऊब चुकी थीं,
जगसे जड़ता दूर भगाकर, कितनी इनमें डब चुकी थीं,
मत्य अमर संगीत सुनाकर, कितनी झंझाके झोकोंसे, बहती थी विपरीत। उसी रागसे जाग उठी फिर सोई जगकी प्रीत । तुम थे जगके मीत. स्वामी! तुम थे जगके मीत ॥ तुम थे जगके मीत, स्वामी । तुम थे जगके मीत ।। पर तुम थे उन सबसे न्यारे,
आज मनाते जन्म तुम्हारा, ___ बाधक, साधक हुए तुम्हारे,
गदगद् होता हृदय हमारा, पहुँच गये मजिल पर अपनी, लेकर लक्ष्य पुनीत । गाता है, गायेगा प्रभुवर ! जगत तुम्हारे गीत ! तुम थे जगके मीत, स्वामी ! तुम थे जगके मीत ॥ तुम थे जगकं मीत, स्वामी ! तुम थे जगत के मीत ।