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वर्ष ३, किरण]
पर्शनोंकी भास्तिकता और नास्तिकताका माधार
अपराध होगा।
जुल्म नहीं हुए। जैनदर्शन वेदोंके हिंसात्मक भ० महावीर और महात्मा गौतमबुद्धसे विधानों का खंडन करता है, परन्तु इससे उसे करीब सौ वर्ष पहले जन्म लेनेवाले प्रसिद्ध दार्श- नास्तिकदर्शन नहीं कहा जा सकता। यदि वेद निक महर्षि कपिलने (कहते हैं सबसे प्रथम निन्दक नास्तिक माने गये होते तो कपिलव कपिलने ही दर्शन पद्धतिको जन्म दिया था, उनसे उनका सांख्यदर्शन भी नास्तिकके नामसे मशहूर पहले प्रात्मा आदिके विषयमें न तर्कणा की जाती होना चाहिये था । परन्तु उन्हें किसीने नास्तिक थी और न इन गूढ प्रश्नोंके सुलझानेका प्रयन ही नहीं लिखा । जैन धर्मने वैदिक विधानोंका खले किया जाता था।) जगतकी उत्पत्तिको स्वाभाविक आम विरोध किया, इमलिये कुछ मनचलों बतलाया है और ईश्वर नामके पदार्थका खंडन (वैदकों ) ने जैनदर्शनको भी नास्तिक दर्शन किया है। परन्तु किसी दार्शनिकने कंपिल द्वारा कहकर बदनाम करना शुरू कर दिया। चूंकि चलाये सांख्यदर्शनको नास्तिकदर्श नहीं लिखा। वैदिक विधान पूर्ण तौरसे जगत्-हित करनेमें इससे समझ लेना चाहिये कि नास्तिकताकी कोई असमर्थ सावित हुए और इनसे संसारमें सुख अन्य ही बुनियाद है। कुछ लोग-जो वेदको ही और समृद्धिको सृष्टिको जगह दुःख और प्रशान्त हरएक बातमें प्रमाण मानते हैं-ऋग्वेद आदि तथा चुन्ध वातावरण पैदा होगया। एक समानी वेदोंको प्रमाण न माननेवाले और वेदोंके अप्रा- जानेवाली कौमके सिवाय समस्त मनुष्यों को कृतिक, असंगत तथा युक्ति-विरुद्ध अंशोंका खंडन भनेक तरहसे पतित और अधम घोषित किया करनेवाले दार्शनिकोंको 'नास्तिकोवेद निन्दक:- गया उनके अधिकार हड़पे जाने लगे, पशुभोंक वेद निन्दक नास्तिक है-कहकर व्यर्थ बदनाम बड़े बड़े गिरोह अग्नि कुण्डोंमें धर्मके नाम पर करते हैं । वेदोंमें ऐसी ऐसी बीभत्स और घृणाके वेरहमीके साथ झोंके गये । मभीका जीवन दूभर योग्य बातें लिखी हैं, जिनको कोई भी निष्पक्ष होगया। इन्हीं वैदिक विधानोंका जैन, बौद्ध बुद्धिमान माननेको तैयार न होगा। गोमेध, नर- आदि सुधारक लोगोंने खण्डन किया, जिसमें मेध आदि यझोंका वैदिक कालमें और उसके इन कृत्योंकी कमी दिनों दिन होनी चली गई। पश्चात् कई शताब्दी तक खुले आम धर्मके नाम और इन्हींके बलपर जिनकी आजीविका और पर प्रचार किया गया और जो जुल्म ढाये गये वे शान-शौकत अवलम्बित थी वे लोग घबराये कम निन्दाके योग्य नहीं हैं। उनकी निन्दा तो और वे ऐसे सभी सुधारकों और उनके मत की ही जावेगी। महर्षि कपिलने भी वेदोंके ऐसे या दर्शनको बदनाम करनेके लिये कोई अन्य निन्दाई अंशों पर आपत्ति की थी,खंडन भी किया उपाय न सूझने के कारण 'नास्तिकोवेदनिन्दकः' था। भगवान महावीर व म० गौतम बुद्धने वो इस तरह घोषित करने लगे। इस तरहसे तो धर्मके नामपर किये जानेवाले अत्याचारोंको जड़से प्रत्येक मजहब और दर्शन नास्तिकताकं शिकार उमाद फेंका । तबसे फिर आज तक वैसे कठोर होनेसे न बचेंगे। जिम तरह वैदिक लोग बेद