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वर्ष, किरण २]
दर्शनोंकी पास्तिकता और नास्तिकताका प्राधार
तरह कुम्हार मिट्टीसे घट, दीपक, मकोरा आदि आते हैं जिनका कर्ता बुद्धिमान नहीं होता, अपने मिट्टीके बर्तन, बढ़ई लकड़ीसे कुरमी, मेज, आप बनते बिगड़ते रहते हैं। पास, कीड़ा-मकौड़ा, पलंग किवाड़ आदि और जुलाहा ( बनकर) जड़ निमित्त मिल जानेमे उत्पन्न होते हैं और सृतसे धोती, दुपट्टा, चादर, तौलिया, रूमाल श्रादि विनाश हेतुओंके साहचर्यसे विनिष्ट होते रहते हैं। कपड़ा तैयार करता है। यदि मिट्टी उपादान कारण हीरा, मणि, पन्ना, पुखराज आदि नियत स्थानमें तथा अन्य चक्रादि ( घड़े बनानेका चाक) निमित्त ही पैदा होते हैं । स्वाति की बद यदि सीपमें पड़ कारण मौजूद भी रहे और कुम्हार न हो तो घड़े जाय तो मोती बन जाता है, किसी हाथीके गण्ड
आदिका बनना मर्वथा असम्भव रहता है । उमी म्थलमें भी गजमुक्ता ( एक किस्मका मोती ) का प्रकार यद्यपि जीव और प्रकृति-उपादान-कारणों सद्भाव माना गया है, सर्पराज-मणियार मर्पके के द्वारा हो चेतन अवेतन विश्वकी रचना हुई है; मस्तक पर मणिकी उत्पत्ति होती है; इमी तरह तो भी इस तमाम अत्यन्त कठिन दुरूह और और भी असंख्य उदाहरण दिये जा सकते हैं, व्यवस्थित जगत-रचनाका करनेवाला कोई बहुन जिनके बनाने में प्रकृति के सिवाय अन्य किसी भी बुद्विमान् व्यक्ति जहर है । जो इम रचनाका ईश्वरादि व्यक्तिका जरा भी दखल नहीं है । शा. कर्ता है, वह ईश्वर है, ईश्वरसे भिन्न कोई अन्य यद ईश्वरवादी दार्शनिक उपर्यक्त उदाहरणोंमें भी साधारण व्यक्ति इनने महान् कार्यको नहीं कर ईश्वरका दखल बतलाते हुए कहें, कि ये कार्य भी मकता । चकि ईश्वर मर्वशक्तिमान् , मर्वज्ञ और मातिशय परमात्मा द्वारा ही निर्मित होते हैं। सर्वत्र व्यापक है, इमलिये वह एक ही समयमें परन्तु घामादिकी उत्पत्तिको देखते हुए, उमकी अनेक देशवर्ती, एक देशवर्ती अनेक कार्य और बुद्धिमत्ताकी कलई खल जाती है। पाबाद मकानों भिन्न समयमें भिन्न भिन्न देशमें होनेवाले अनेक की छन, भंगन भित्ति आदि उपयोगी स्थानों पर कार्योको सरलतामे करता रहता है। भी बारिशके दिनोंमें व्यर्थ ही घाम पैदा होजाया
ईश्वरवादी दार्शनिकोंकी तरह निरीश्वरवादी करता है, यह कार्य भी क्या बद्धिमत्ताका सूचक दार्शनिक भी कार्यकी उत्पत्ति उभय कारणोंसे है ? (उपादान और निमित्तमे) मानते हैं । जैन- ईश्वरवादी दार्शनिक ईश्वरको जगत् निर्माता दर्शनने ईश्वरकी जगन-कतनाका युक्तिपूर्वक खंडन माननेमें यह दलील भी देने हैं कि, अगर जगतका किया है, वह मा यहाँ नहीं लिया जा सकता बनाने वा व्यवस्था करनेवाला महान् बुद्धिमान न यहाँ मोटी दलीलें पेश करूँगा, जिससे जगन्की होता, तो यह विश्व-रचना इतनी व्यवस्थित और प्राकृतिकताका भान हो सके।
सुन्दर न होती । यह उसी मर्वशक्तिमान परमात्मा हमारे ईश्वरवादी भाई कहा करते हैं, कि हर. की लीला है जिमने जगनको एक सुन्दर ढांचे में एक कार्यकी उत्पत्ति बुद्धिमान सहायकके बिना ढाला है । भाइयो, जरा विश्व रचनाकी ओर भी नहीं होती; परन्तु संसारमें ऐसे बहुतसे कार्य नजर गौर कीजिये, माया यह व्यवस्थित है या अन्यव