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[भान, वीरनिवास सं० २१
सोनेके पहले उत्तम विचारोंसे तथा शीर्षासनके तुम्हें श्रात्म दर्शन भी हो सकेगा, जो कि सली सम्यअभ्याससे अथवा कमरके नीचे तकिया रखकर सोनेसे ग्दर्शन है। इस अभ्यासपूर्वक तुम जो मी सांसारिक भी स्वप्न नहीं आते, क्योंकि इनसे प्राणोंकी गति ऊर्ध्व व्यावहारिक काम करोगे उन सबमें तुम्हारी अत्यल्प होती है, यह मेरा खुदका अनुभव है। प्राणोंकी गति आसक्ति होंगी, जिसका परिणाम यह होगा कि कर्मोका निम्न होनेसे कामुक स्वप्न आते हैं और उत्तेजना पासव अत्यल्प हो जायगा। यह कहना भी अत्युक्त होती है।
न होगा कि किसी समय श्रास्रव बिल्कुल बन्द भी हो हमेशा जाग्रत होने के अभ्यासके लिये सबसे पहले जायगा; क्यों किजावत अवस्थामें भी जो असावधानी रहती है उसे दूर विषयविषयस्थोऽपि निरासंगो न लिप्यते । करना चाहिए । क्योंकि
कर्दमस्यो विशुद्धामा स्फटिकः कर्दमैरिव ॥ ६॥ पुनस्लमांतरकर्मयोगात्स एवजीवः स्वपिति प्रबुद।
नीरागोमासुकं द्रव्यं मुंबानोऽपि न बध्यते । कैवल्योपनिषद्
संखः किं जायते कृष्णः कर्ममादौ चरणापि mum
बन्यतो यो निवृत्तोऽस्ति स पूज्यो व्यवहारिमः । अर्थात्-जन्मांतरोंके कर्मयोगके कारण वही जीव
भावतो पो निवृत्तोऽसौ पूज्यो मोर थियासु मिर जगा हुआ मी सोता है। सदा सतत् जाग्रत रहनेका
-अमितमति-योगसार अभ्यास करनेके लिये मनुष्यको चाहिये कि वह सुबह उठनेके बादसे रात्रिको सोने तक हर एक काम अर्थात्-विषयों में रचापचा होने पर भी निरासंग करते समय मनन-पूर्वक इस बातका खयाल करता (अनासक्त) जीव उनसे उसी प्रकार लिप्स नहीं होता रहे कि यह क्या कर रहा है। उठते समय मन ही मन जिस प्रकार कि विशुद्धामा स्फटिक कीचड़में रह कर जाप करे कि मैं उठ रहा हूँ। बैठते समय आप किया भी उससे लिप्त नहीं होता। नीराग मनुष्य अप्रासुक करे कि मैं बैठ रहा हूँ। इतने पर भी यदि खयाल भूल द्रव्य खाकर भी उससे बद्ध नहीं होता । कीचड़में रहकर जाय, तो यह जाप जोर जोरसे बोला जाना चाहिए, क्या शंख काला हो जाता है ! बाह्य वेशादिसे जो नि. जिसमें सबको सुन सके; परन्तु मन ही मन जाप करने वृत्त मालूम होता है उसकी पूजा संसारी लोग करते हैं, का फल अधिक है। इस जपका शुभ परिणाम तुम्हें परन्तु मोद जानेकी इच्छा रखने वाले ऐसे मनुष्यकी एकही दिनमें मालूम होगा । यहाँ तक कि रात्रिमें सोते पूजा करते हैं जो भावसे निवृत्त है। वक ही तुम्हारे अन्दर यह जाप चाल रहेगा तथा स्वप्न हम ऐसे कई गृहस्थाश्रमी साधुओंका चरित्र सुन बदि कमी भावेंगे तो उसमें भी तुम अपनेको जाप चुके हैं, जो संसारमें रहकर भी उससे निर्मोही रह सके, करते हुए पाओगे। उस समय तुम्हारी प्रातरिक सद- परंतु ऐसे मनुष्य करोड़ोंमें एक दो ही होते हैं। महात्मा सदविवेकबुद्धि जाग्रत रहेगी और हरेक खोटे कामोंसे गांधी ऐसे पुरुषों में से एक हैं। करोड़ों रुपये माने जाने बचाती रहेगी। जब तुमारी उठनेकी इच्छा होगी तब में इन हर्ष योक नहीं होता और न अपने कार्यके हो तुम्हारी नींद खुलेगी और इस क्रियाके फल-स्वरूप पलट जानेसे ही इन्हें हर्ष-शोक होता है।