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अनेकान्त
[माध, वीरनिवाब सं० २५६
परिवीग मंतराए उवषादो तप्पदोस विणवथे। पठवीस दु बावीसा सोबास एरण बावणवसा ॥ भावाबदुभूषो संभदि भवासणाएनि ।
-प्रा. पंचसं० ३,७८ -~-गोक०८०० पगवरणा परणासा तिदाबबादास सत्ततीसा । इसी प्रकार पंचसंग्रहकी २, ४, ५, २६, ४७, ५०, चवीसा बावीसा बावीसमपुरुषकरणोति॥ १०१, २०२, २०३, २०४, २०५, २०६, २०७, २०८, थूले सोजसपहुदी एगणं जावहोदि दसाणं । १०६, २१०, २१५, २४०, २५१, ४१२, ४२३, ४२७, सुहुमादिसु दस गवयं गवयं जोगिम्मि सत्तेव ॥ ४२८, ४२६, ४३०, ५, ४५४. ४५५, ४६३, ४८८,
--गो०० ७८६,७६० ve, ४६, ४६७, ५०१, ५०२, ५०३, ५०५, ५०६, अहत्तीससहस्सा बेचेव सयाहवंति सगतीसा ।
AL ५३५, ५४७, ५५५, ७३६, नम्बरकी गाथाएँ पदसंखा णायम्वा लेस्सं पति मोहणीयस्स ॥ गोम्मटमार कर्मकाण्डमें क्रमशः नं० २०, २२, ३५,
--प्रा. पंचसं पत्र, ५५ ११४, २७६, २८२,८०१,८०२, ८०३, ८०४,८०५, अत्तीससहस्सा बेरिणसया होंति सत्ततीसा य । ८०८०७, ८०८, ८०६, ८१०, ४५५, १२२, ४६३, पपरीणं परिमाणं बेस्सं परि मोरणीयस्स ॥ ११६, १५२, १५४, १३४, १३५, १३६, १७८, १६३,
-गो क०, ५०५ १६४, १६५, १८३, १८२, ४८, १५, १६२, २०७, इनके अलावा पंचसंग्रह के पत्र ५७ और ६१ की २०८, १०६, २११, २१५, २१०, ६३०, ४६३, ५०८, दो गाथाएँ और भी गोम्मटसारमें ७१०, और २७१ ७ नम्बर पर पाई जाती है।
नं. पर उपलब्ध होती है। और कुछ गाथाएँ ऐसी भी इनके अतिरिक्त जिनगाथाओंमें कुछ पाठ-भेद पाई जाती हैं जिनका पूर्वार्ध तो मिलता है पर उत्तरार्ध पाया जाता है उन्हें नीचे दिया जाता है:-- नहीं मिलता-वह बदला हुआ है। उन्हें लेग्व वृद्धिके
बामस्स पबंधोदयसंताणिगुणं पडुन य विभज। भयसे छोड़ा जाता है । विगयोगे आप एत्य दु भणियन्वं भरथजुत्तीए ॥ इम मब तुलना परसे मालूम होता है कि गोम्मट
-प्रा. पंच सं० पत्र ५६ सार एक मंग्रह ग्रंथ है। और इसके संग्रह करने में बामस्म पबंधोदय सत्ताणि गुणं पहुच उत्ताणि। श्राचार्य नेमिचन्द्रने प्राकृत पंचमंग्रहमे विशेष सहायता पसेवा यो सम्म भणिदग्वं भत्थजुत्तीए ॥ ली है।
___ --गोल क०, ६६५ । वीर सेवामन्दिर, मरमावा; संबवण्या पपणासा तेबाब बपाजसस सीसाय । ता० १६-२-१९४०