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बवेकान्त
[माघ, वीर विर्वाद सं० २॥
साहित्यको बोर बिल्कुल ही पीठ दिये हुए हैं और करके नैन-विधिसे बृहत् शान्तिविधान कराया था, मार प्रति अपना कुछ भी कर्तव्य नहीं समझते हैं। बिममें सोने, चान्दीके कमाशोंमे सुपार्यवाय भगवानका
महोत्तरी स्नान (अभिषेक) हुआ था और इस महो. (३) युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसरि लेखक सबमें एक लाख रुपयेके करीब सर्च हुआ था । पूजन मगर सन्द नाहटा और भंवरलाल नाहटा । प्रकाशक
समासिके अनन्तर मंगल दीपक भौर भारतीके समय संकरदान शुभराज नाहटा, २०५६ प्रारमेनियन स्ट्रीट
स्वयं सम्राट अकबर अपने पुत्र शाहजादे सलीम तथा सकता । साइज २०४३० १६ पेजी । पृष्ठ संख्या
अनेक मुसाहिबोंके साथ शान्ति विधानके स्थानपर उपसब मिलाकर ४५२ । मूख्य सजिल्द १) रु० ।
स्थित हुआ था और उसने १० हजार रुपये जिनेन्द्र
भगवानके सम्मुख भेरकर प्रभुभक्ति तथा जिनशामनका इस ग्रन्यका विषय इसके नाममे ही प्रकट है। गौरव बढ़ाया था। साथ ही, शान्तिके निमित्त अभिअन्य १० वीं शताब्दीके विद्वान प्राचार्य युग प्रधान क जलको अपने नेत्रोंपर लगाया और अन्तःपुर में श्री जिनचन्द्र जी का परिचय बड़ी खोजके साथ दिया भी भक्तिपूर्वक लगाने के लिये भेजा था। कहते हैं हम गया है। भाप अपने समयके बड़े ही प्रभावशाली अष्ठोत्तरी अभिषेकके अनुष्ठान सर्वदोष उपशान्न हुए, भाचार्य थे, सम्राट अकबर भापके प्रभावसे बहुत प्रभा- जिसमे सम्राटको परम हर्ष हुआ और वह जिनधर्मका वित हुआ था और उसने अपने राज्य में कितने ही दिन और अधिक भक्त बना। मालूम नहीं यह घटना कहाँ डिसा न किये जानेके लिये घोषित किये थे और फिर तक सत्य है; परन्तु इममें सन्देह नहीं कि अकबर के बापका अनुकरण करके दूसरे राजाओंने भी कुछ-कुछ समयमें जैनधर्मका प्रभाव बहुत कुछ व्यापक हुआ था दिनोंके लिये अपने राज्यों में प्रमारिकी (किमी जीवको और उसके अनुयायियोंकी संख्या तब करोड़ोंकी कही न मारनेकी) घोषणा की थी और इससे जैन-धर्मकी जाती है । यह सब मधरित्र एवं विद्वान माधु मन्तोंके बदी प्रभावना हुई थी। और भी कितनी ही अनुकूलनाएँ प्रभावका हा फल है। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ महामहोपाजैनियोंको अकबरकं राज्यमें भापके प्रतापमे प्राप्त हुई ध्याय पं० गौरीशंकर हाराचन्दजी श्रोझा महोदय ने, थी । यह सब वर्शन इम ग्रंथमें शाही फर्मानोंकी नकल पुस्तकपर दी हुई अपनी सम्मनिम, स्पष्ट स्वीकार किया के साथ दिया हुआ है । एक स्वास घटनाका भी इसमे है कि इन मूरिजाका उपदेश उस समयके तत्कालीन उल्लेख है और वह यह है, कि- अकबरके पुत्र सलीम मुग़ल बादशाह अकबरने मुनकर अपने साम्राज्यमें से के घर लड़की मूल नक्षत्रके प्रथम पादमे पैदा हुई थी, हिंसावृत्ति बहुन कुछ रोक दी थी । इनकी तपस्या ज्योतिषियोंने उमका फल शहजादा सलीमके लिये और त्यागवृत्ति ने बादशाहका चित्त जैनधर्मकी ओर अनिष्टकारक बतलाया था और लाकीका मुंह न देखने स्वींच लिया था, जिससे जनधर्मका विकास होकर तथा उमका जल्ल-प्रवाह कर देने आदिके द्वारा परित्याग उस तरफ उत्तरोतर प्रास्था बढ़ती जानी थी । फलतः की व्यवस्था दी थी। नब इस दोषको उपशान्तिके लिये बादशाह अपने यहाँ प्रायः जैनमाधुनोंको बुलाकर उनसे अकबरने अपने मन्त्रीश्वर कर्मचन्द बच्छावतसे परामर्श उपदेश ग्रहण किया करता था। वह जैनसमाजके लिये