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वर्ष ३, किरण ३ ]
रचियता आचार्य वीरसेनने अपनी धवलाटीकामें इस की कितीही गाथाए' 'उक्तं च रूप से या बिना किसी संकेत के उद्धृत की हैं:- अथवा यों कहिये कि जिन गाथाओं को अपने कथन की पुष्टिमें प्रमाणरूपसे पेश किया है उनमें से बहुतसी गाथायें प्राकृत पंचसंग्रहकी हैं। धवलाका जो सत्प्ररूपणा विषयक अंश अभी हाल में मुद्रित हुआ है उसमें उधृत २१४ पद्योंमें से अधिकांश गाथाएं ऐसी हैं जो ज्योंकी त्यों अथवा थोडेसे पाठभेदादिके साथ इस ग्रन्थ में पाई जाती हैं। ये प्राय: इसी परसे उधृत जान पड़ती हैं। अभीतक किसीको पता भी
था कि ये किस प्राचीन ग्रन्थपर से उद्धृत की गई हैं । उनमें से कुछ गाथाएं नमूने के तौर पर नीचे दी जाती हैं :
- कम्म - विम्वित्ता जाजेट्ठा सागई मुणेयब्वा । जीवा हु चाउरंगं गच्छति हु सागई होइ ॥ - प्राकृत पंच सं०, १, ४९ गर-कम्म - विणिग्वत्ता जाचेट्ठा सागई मुणेयश्वा । जीवा हु चाउरंगं गच्छति तिय गई होइ ॥
अति प्राचीन प्राकृत 'पंचसंग्रह '
- धवला० ८४, पृ० १३५ तं मिच्छतं जमसह तच्चारण होइ भरथाणं । संसदमभिगहियं अराभिगाहियंतुं ततिविषं ॥ - प्राकृत पंच सं०, १, ७ तं मिच्छतं जहम सदहणं तच्चाय होइ भत्थायें । संसदभिग्गयिं भणभिग्गहिदं तिततिविहं ॥
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जिन गाथाओं में कुछ अधिक पाठ-भेद पाया जाता है उन्हें नीचे दिया जाता है:
- धवला १०७, १० १६२ वेदस्सुदोरयाए बालतं पुणियच्छदे बहुसो । इस्थी पुरुस उस य वेयंति तो हवदि वेदों ॥ - प्राकृत पंच सं०, १, १०१ वेदस्सुदीरणाए बालन्तं पुणणियच्छदे बहुसो । भो-पु-सरविय तितो हवर बेभो ॥
- पवला ८९, १० १४१
छम्मा साउगसेसे सम्पच' जेलि केवलं नाणं । तेखियमासमुग्वायं सेसेसु इति मयपिज्जा ॥ - प्राकृत पंच सं०, १, २०० जस्स केवलं याये । सेसा भज्जा समुग्वार ॥
छम्मा साउवसेसे उप्प स- समुग्धाभो सिज्म
- धव०, १६७, पृ० ३०३ सुट्ठिमासु पुढविसु जोरसवण - भवण सम्बइत्थीसु । वारसमिच्छोवादे सम्माद्विस्यस्मि उववादो ||
- प्रकृत पं०, १, १९३ छढिमासु पुढबीसु जोइस-वण- भवण सत्य इत्थीसु । वेसु समुप्पज्जइ सम्मारट्टी दुजो जीवो ॥
-- धव०, १३३, पृ० २०९ इसी तरह प्राकृत पंचसंग्रहके प्रथम 'जीवस्वरूप' प्रकरणकी २३, ६६, ६९, ७१, ७५, ७७, ७८, ७९, ८०, ८८, १५६, नं० की गाथाएं धवलाटीकाके उक्त मुद्रित अंश में १२१, १३४, १३५, १३७, ८६,
१४६, १५०, १५२, १५२, १४०, १९६, २१२ नम्बर पर ज्यों की त्यों अथवा कुछ मामूली से शब्द परिवर्तन के साथ पाई जाती हैं।
इन गाथाओं के सिवाय, १०० गाथाएं और भी धवलाकं उक्त मुद्रित अंशमें उपलब्ध होती हैं। इस तरह कुल ११६ गाथाएं उक्त अंशमें पंचसंग्रहकी पाई जाती हैं, जिनमें उक्त १०० गाथाएं ऐसी हैं जिनका प्रोफेसर हीरालालजीने अपनी प्रस्तावना में धवलाटीकापर से गोम्मटसार में संग्रह किया जाना लिखा है। ये गाथाए गोम्मटसारमें तो कुछ कुछ पाठ-भेदके साथ भी उपलब्ध होती हैं, परन्तु पंचसंग्रहमें प्रायः ज्योंकी त्यों पाई जाती है- पाठ-भेद नहींके बराबर है और जो