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अनेकान्त
जरूर उद्धृत की है, बहुत सम्भव है कि आचार्य कुन्दकुन्दने पंचसंग्रहसे उदधृत की हो, और यह भी सम्भव है कि चारित्र प्राभृतसे पचसंग्रहकार ने उठाकर रक्खी हो; परन्तु बिना किसी विशेष प्रमाणके अभी इस विषय में कुछ भी नहीं कहा जासकता है तो भी इससे इससे इतना तो ध्वनित है कि पंचसंग्रहकी रचना कुन्दकुन्दसे पहले या कुछ थोड़े समय बाद ही हुई होगी। हाँ इतना जरूर कहा जासकता है कि ५वीं शताब्दी से पहले इसकी रचना हुई है, क्योंकि विक्रमकी छठी शताब्दी के पूर्वार्धके विद्वान आचार्य देवनन्दी (पूज्यपाद) ने अपनी सर्वार्थसिद्धिकी वृत्तिमं आगमसे चक्षु इन्द्रियको अप्राप्यकारी सिद्ध करते हुए पंचसंग्रहकी १६८ नम्बरकी गाथा उधृत की है, जिससे स्पष्ट है कि पंचसंग्रह पूज्यपादसे पहले बना हुआ है । वह गाथा इस प्रकार है:
पुट्ठे सुग्गे सर्द भपुट्ठे पुरा पस्सदे रूपम् । फार्स रसंच गंध बद्धं पुट्ठे वियायादि ॥ इसके सिवाय, श्वेताम्बरीय सम्प्रदाय में 'कर्म प्रकृति' के कर्ता शिवशर्मका समय विक्रमकी ५ वीं शताब्दी माना जाता है, उनका संग्रह किया हुआ एक 'शतक' नामका प्रकरण है उसमें बंधके कथन की प्रधानता होनेसे उसका बंधशतक नाम रूढ़ होगया है । इस प्रन्थ में पंचसंग्रहकी बहुत गाथायें पाई जाती हैं, जिनका विशेष परिचय एक दूसरे ही लेख में देनेका विचार है अस्तु, यदि शिवशर्मा उक्त समय ठीक है तो कहना होगाकि रचना विक्रम की ५ वीं शताब्दी से पहले हुई है।
[ पौष, वीर निर्वाण सं० २४६६
संदृष्टि भी दी है, जिससे गाथाओं में दीगई बातों का अच्छी तरहसे स्पष्टीकरण होजाता है, परन्तु इस प्रभ्थके कर्ता कौन हैं - उनका क्या नाम है और उनकी गुरुपरम्परा क्या है ? तथा इस ग्रन्थकी रचना कहाँ और कब हुई है ? आदि बातें अन्धकारमें होने से उनके विषयमें अभी विशेष कुछभी नहीं कहा जोसकता है, इसके लिये ग्रंथकी प्राचीन प्रतियोंकी तलाश होनी चाहिये । दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके प्रन्थभण्डारोंमें इसके लिये अन्वेषण होने की बड़ी जरूरत है। बहुत संभव है कि उक्त ग्रंथकी पं० श्रशाधरजी से पहले की प्रतियाँ उपलब्ध हो जांय, जिनपर कर्तादि की प्रशस्तिभी साथमें अंकित हो । क्योंकि पं० आशाधरजीने भगवती आराधनापर 'मूलाराधना दर्पण' नामकी जो टीका लिखी है उसके ८वें आश्वासमें "तथाचोक्तं" वाक्यके साथ इस पंचसंग्रह प्रथकी ६ गाथाएँ उद्धृत की हैं। जो पंचसंग्रह के तीसरे अधिकारमें नं० ६०
से ६५ तक क्यों की त्यों दर्ज हैं अतः अन्वेषण करने पर इस ग्रन्थकी प्रस्तुत प्रतिसे भी अधिक प्राचीन ऐसी प्रतियोंके मिलनेकी बहुत बड़ी संभावना है। जिनपरसे कर्तादिका परिचय प्राप्त हो सके, और प्रकृत विषयके निर्णय करनेमें विशेष सहायता मिल सके। आशा है विद्वान्गण मेरे इस निवेदनपर अवश्य ध्यानदेंगे । और खोज द्वारा प्रन्थकी और भी प्राचीन प्रतियां उपलब्ध होनेपर उनका विशेष परिचय प्रकट करनेकी कृपा करेंगे, अथवा मुझे उनकी सूचना देकर
अनुगृहीत करेंगे ।
इस सब तुलनात्मक विवेचनपर से स्पष्ट है कि यह 'पंच संग्रह' उपलब्ध दिगम्बर श्वेताम्बर कर्म साहित्यमें बहुत प्राचीन है। इसमें डेढ़ हजारके करीब गाथाओंका अच्छा संकलन है। साथमें, अंक
वीर सेवा मन्दिर, सरसावा, ता० १३-१-१९४०