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प, किरण]
शावर्षशका रूपान्तर जाटवंश
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रस्मरिवाज उनकी सोसाइटीमें पर्वी जाने लगी, "Though to my mind the term मेरे विचार से अब ये दोनों जातियां एक य. Rajput is an ocoupational rather than निष्ठ स्टॉक बनाती हैं। जाट और राजपतोंकी ethological repression." मित्रता केवल रस्म रिवाजों को है नकि जातीयता अर्थात्-मेरे मस्तिष्कमें बह पाव भाती है, की । मैं विश्वास करता हूँ कि इस मिश्रित स्टाकके कि राजपूत शब्द एक जातीयवाका गोषक होने वे खानदान जिनको भाग्यने राजनैतिक उन्नतिमें की बनिस्बत पेशेका पोधक है।" अग्रसर कर दिया, वे अपनो उमतावस्थाको प्राप्त
उपसंहार होनेसे ही राजपूत' कहलाने लगे, और उनके
वर्तमानका जाटवंश जैन भागम-संमत मातवंशजोंने इस उपाधिको बड़ाईके साथ सीमित कर
वंशको रूपान्तर है या कुछ और । इस विषय दिया और छोटी जातियोंने मित्रताका सूचक बना
में आशा है कि विद्वान लोग अपने मन्तव्य दिया। साथ ही अपने रक्तको शुद्ध कहकर निम्न
जाहिर करेंगे। झाववंशमें जैसे जैनधर्मका प्रचार श्रेणीके लोगोंसे विवाह-संबन्ध करना बन्द कर.
था ठीक वैसे ही कुछ वर्ष पहले तक जाटोंमें जैन दिया। पुनर्विवाहकी मनाही करदी। जिन लोगोंने
न धर्मकी उपासना रही है। अंचलगच्छकी पढावली इन नियमोंको नहीं माना वे अपनी स्थितिसे गिर.
में सूचित जाखडिया गच्छ क्या जाटोंकी बीकागये और राजपूत कहे जानेसे वंचित रहे । ऐसे
नेरके प्रदेशमें बसी हुई जाखडिया जाविस संबन्ध कुटुम्ब जिन्हें कि अपने राज्यमें ऊंचे दर्जे मिल
नहीं रखता होगा १ स्था गच्छके वर्तमान साधु गये उन्होंने उन सारे नियमोंका पालन शुरू कर
समुदायके मुख्य नेता-गुरु श्रीमान् वृद्धिचन्द्र दिया। वे राजा ही नहीं राजपुत्र यानी राजा जी महाराज भी इस जाटवंशके कोहेनूर थे, यह बेटे बनगये।
नहीं भूलना चाहिये। इस सम्बन्ध में विद्वान लोग मिस्टर इबटसन राजपूत' शन का अर्थ इस और अधिक प्रकाश सलनेकी सफल चेष्टा करेंगे, वरह से करते हैं:
ऐसी भाशा की जाती है। विशम् ।