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वर्ष ३, निव]
बंगीव-विशाबॉबीन-साहित्य प्रगति
जैनेतर विशिष्ट पत्रोंमें प्रकाशित किये जानेका जैनधर्म ऊँचे शिखर पर चढ़ा हुआ था वह फिरसे प्रबन्ध रहनेसे प्रचारकार्य बहुत शीमागे बढ़ेगा। नजर अाजाय, कमसे कम हज़ारों मनुष्य मांसनिबंधोंके प्रकाशनके पूर्व अच्छी तरह परीक्षा मत्स्य मक्षणका त्याग कर सकते हैं। जिससे लाखों करलेनी चाहिये ताकि किमी लेखकने कोई मन- करोड़ों जीवोंको अभयदान मिले। प्राशावे भ्रान्ति की हो तो वह पहले ही सुधारी जा सके, अब अपना कर्तव्य संभालेगे। इमसे लेखकको अपनी भलें विदित हो जायेंगी (७) कई स्थानों में मुनिमहाराजोंके जाने में नाना असु. और प्रकाशन भी भ्रान्तिरहित होगा।
विधायें हैं, उन स्थानों में कतिपय प्रचारक विद्वानों इसी प्रकार बगीय विद्वानोंके लिखित ग्रंथोंको भी द्वारा कार्य होसकता है। अनः २-४ प्रचारकोकी मिन्धी जैनप्रथमाला श्रादि द्वारा प्रकाशित करनेका भी नियक्ति परमावश्यक है, जिसमे प्रचारकार्य प्रबन्ध होना चाहिये, ताकि लेविकको प्रकाशकांके तने व्यापक एवं विशिष्ट हो। की चिन्ता न हो।
इसी प्रकार अल्प मूल्यम या श्रमूल्यरूपस जैन (४) एक मामयिक मासिक पत्र भी पूर्व प्रकाशित दर्शनके मारभूत कई ग्रंथाका प्रचार इंगलिश एवं बगला
"जिनवाणी" की भाति प्रकाशित किया जाय, भाषामें करने द्वारा तथा अन्य विविध योजनाओं द्वारा जिसमें हिन्दी,बंगला और अंग्रेजी लेखांको प्रकाशित पुनः पूर्ण प्रयत्न कर जैनधर्मका सदेश सर्वत्र प्रसारित किया जामके। मामयिकपत्रमे प्रगति बहुत फलवती करना परमावश्यक है। मैंने इम लपलेखमें दिशा सूचक होती है और प्रचारका प्रशस्तमार्ग सरल हो रूपसे महत्वकी कतिपय योजनाओंको ही जैन समाजके जाता है।
समक्ष रखा है, अन्य विद्वान एव जैनधर्मके प्रचार प्रेमी (५) कलकत्ता विश्वविद्यालय में एक जैन चैयरकी बड़ी माजन अपने अपने विचार शीघ्र ही अभिव्यक्त करे,
श्रावश्यकता है, जिसमें जैनदर्शन, साहित्य, कला एव समाज उने कार्य रूपमें परिणत करनेमें तन मन श्रादिको ममुचित शिक्षा जैनविद्वान द्वारा बंगीय धनमे महयोग दे, यही पनः पन: मादर विज्ञप्ति है। जैन, जैनेतर छात्रांको दी जाय । योग्य छात्रोको स्थानीय बगीय जैन ममाजकास दिशामें प्रयल छात्रवृत्ति भी अवश्य दी गय ।
कानेका मर्यप्रथम कर्तव्य है। मुर्शिदाबाद एवं कल(६) धर्मप्रचारका कार्य जैमा त्यागी विद्वान मुनियोंमे कत्तेके जैन भाइयोंको मैं पुनः उनके आवश्यक कर्तव्य
हो मकता है वैमा अन्य से नहीं, उनके शान एव की याद दिलाता हूँ, आशा है वे इसपर अवश्य विचार चारित्रका प्रभाव भी बहुत अच्छा पड़ता है। जैन- करंगे एवं अन्य प्रान्तोंके भाइयांक मन्मुख भी श्रादर्श दर्शन सम्बन्धी शकाग्रीका बगीय विद्वान उनमे उपस्थित करेंगे। निराकरण कर मकते हैं और भी उनके उपदेशसे लेव ममाप्त करने के पश्चात् न. ५ योजनाके कई विद्वान प्रचार एवं माहित्य-मेवामें जुट सकते हैं मंबंधम कलकत्तेकी गत महावीर जयन्ती पर भीयक माथ ही,अादर्श सिद्धान्तोका शिक्षितसमाजमें महज बहादुरमिह जी मिंघीने जो विचार व्यक्त किये उनको प्रचार हो सकता है, पर वेद है कि हजारों जैनी कार्यरूपमें परिगत देखने को मैं उत्कंठित है। एक श्रामाम-बंगाल में रहते हैं पर उनकी प्रगति इतनी नाहरजीके कलाभवनकी ० हजारकी बहुमूल्य वस्तुएँ सीमित है कि उसका दुसरीको पता नहीं चलना। कलकत्तेके विश्वविद्याययके प्राशुतोष म्यजियमको दानश्वे. जैन मुनि एव दिगम्बर विद्वान बंगला और के मवाद मिले हैं। क्या ही अच्छा हो उनका पुस्तकालय अंग्रेजी भाषाका आवश्यक ज्ञान प्रास करके ग्राम भी न०१ योजनानुसार कर दिया जाय । प्राममे धूम तो पुनः जिन बगाल-बिहार में एक समय
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