Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
View full book text
________________
( २० )
उपसभापति शुभकामना
उत्तरप्रदेश विधान परिषद्
विधान भवन, लखनऊ प्रिय सुराना जी,
७ जनवरी, १९७५ मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि जी महाराज की सेवाओं के उपलक्ष में आप उन्हें शीघ्र ही एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने जा रहे हैं । भारतीय समाज के शैक्षिक, धार्मिक, नैतिक एवं सामाजिक उत्कर्ष के लिए जो सतत प्रयत्न एवं महान सेवा आचार्य जी कर रहे हैं। उससे भारतीय समाज निःसंदेह लाभान्वित हो रहा है। धर्म और दर्शन के क्षेत्र में अनेक विद्वान उनके जैसे तेजस्वी और महानसंतपुरुष से ज्ञान प्राप्त कर जनता को अपनी ज्ञानवाणी एवं अनुभव से मार्गदर्शन कर रहे हैं। ऐसे तपस्वी और विद्वान संत को सार्वजनिक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने का जो निश्चय किया गया है वह एक सराहनीय कार्य है। मैं इसकी सफलता के लिए कामना करता हूँ।
-देवेन्द्रप्रतापसिंह
अध्यक्ष-भारत जैन महामण्डल
बम्बई पूज्य आचार्य श्री आनन्दऋषिजी महाराज स्थानकवासी वर्द्धमान श्रमणसंघ के तेजस्वी विद्वान आचार्य सम्राट हैं। इस वृद्धावस्था में भी सतत जागरूक रहकर अपनी साधना एवं जन-जन को पदयात्रा द्वारा नैतिक मार्गदर्शन दे रहे हैं । आचार्य श्री का जीवन त्याग, तपस्या के साथ-साथ सरलता और सौम्यता का प्रतीक है। आपने संघ में धर्म एवं दर्शन के विद्धान तैयार करने में अथक परिश्रम किया है। अनेक स्थानों पर आपकी सद्प्रेरणा से शिक्षणशालाएं एवं विद्यामंदिर छात्र छात्रओं को संस्कार दे रहे हैं।
पूज्य आचार्य श्री एक अन्तर्मुखी एवं साधना शील सन्त हैं । जिन्हें नाम और यश का मोह नहीं है किन्तु कृतज्ञभाव से समाज उनकी महानता और त्याग का अभिनन्दन कर रहा है जो अभिनन्दनीय है। इस अवसर पर मैं पूज्य आचार्य श्री के चरणों में अपनी भावपूर्ण श्रद्धा अर्पित करता हूँ और उनके त्यागमय जीवन की अभ्यर्थना करता हूँ।
-शादीलाल जैन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org