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प्रथम अध्याय में भगवान महावीर के समय क्रिया के संदर्भ में दार्शनिक जगत में चलने वाले वाद-विवाद और उनके परिणामस्वरूप फलित होने वाले सिद्धांतों की चर्चा है।
. द्वितीय अध्याय में क्रिया की व्युत्पत्ति, परिभाषा तथा क्रिया के भेदों-प्रभेदों का विस्तृत विवेचन है। प्रस्तुत अध्याय में क्रिया के आचारमीमांसीय स्वरूप पर गहरा और सूक्ष्म चिंतन प्रस्तुत किया है।
तृतीय अध्याय में क्रिया और कर्म के पारस्परिक संबंध को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। जितने प्रकार की क्रियाएं हैं उतने ही प्रकार के कर्म अथवा जितने प्रकार के कर्म उतनी ही प्रकार की क्रियाएं हैं। कर्म और क्रिया एक दृष्टि से अन्योन्याश्रित हैं। इनमें परस्पर कारण-कार्य संबंध है। वस्तुत: जैन आचारशास्त्र में क्रिया और कर्म सिद्धांत का वही स्थान है जो विज्ञान में कारण-कार्य सिद्धांत का है। आधुनिक संदर्भ में क्रिया
और कर्म को क्रिया-प्रतिक्रिया का सिद्धांत भी कहा जा सकता है। इसका कारण कर्म सिद्धांत की कुछ अपनी मान्यताएं हैं. (i) प्रत्येक क्रिया उसके परिणाम से जुड़ी हुई है अर्थात् प्रत्येक क्रिया का
कोई न कोई फल अवश्य होता है। (ii) कर्म और उसके फल की परम्परा अनादिकालीन है। (iii) फलानुभूति उसी को होती है, जिसने पूर्व में क्रिया की है।
मेक्समूलर ने भी माना है कि अच्छे बुरे कर्म का फल निश्चित है। इसी प्रकार रेनोर जोन्सन ने माना है कि भौतिक जगत् में सर्वत्र कार्य-कारण अथवा क्रिया-प्रतिक्रिया (The Law of Cause and Effect or Action and Reaction) का सिद्धांत कार्य कर रहा है। यद्यपि विज्ञान जगत् में इस संदर्भ में मत वैविध्य भी है। आंशिक तुलना करें तो इन सिद्धांतों का प्रवृत्ति, विचार, भावना आदि स्तरों पर स्वीकार ही आध्यात्मिक जगत् में कर्म का सिद्धांत है। कर्म सिद्धांत में पुण्य और पाप तथा शुभ और अशुभ प्रवृति में गहरा संबंध माना गया है। प्रवृत्ति की शुभाशुभता का कारण तत्त्वज्ञान की भाषा में. कषाय और लेश्या की मन्दता और तीव्रता तथा शुद्धि और अशुद्धि है। मनोविज्ञान की भाषा में विधेयात्मक और निषेधात्मक भाव और मनोवृत्तियां कारण हैं। भाव के अनुरूप ही कर्म-बंध होता है। लेश्या और भावधारा में भी अन्तर्व्याप्ति है। लेश्या द्रव्य और भाव के भेद से दो प्रकार की है। भाव लेश्या आत्मा का परिणाम है। द्रव्य लेश्या सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से निर्मित पौद्गलिक संरचना है। यह हमारे भावों एवं तजनित कर्मों की प्रेरक है।
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