________________
करते हैं। अतः स्पष्ट है कि प्रवृत्ति का मूल हेतु केवल मन नहीं हो सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए क्रिया के सन्दर्भ में समग्रता से विचार करने की आवश्यकता है।
उपर्युक्त मान्यता की स्थूलता तब दृष्टिगोचर होती है जब हम क्रिया शब्द की गहराई में जाते हैं। क्रिया में मात्र मन को ही प्रवृत्ति का हेतु नहीं माना गया है, अपितु भाषा
और शरीर को भी माना गया है। तीनों में से किसी एक का भी मूल्य कम या अधिक नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा ध्यातव्य यह है कि मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति भी मूल नहीं है। इसके पीछे भी चेतना, अध्यवसाय का पूरा चक्र चल रहा है। मन के अभाव में भी बंधन-मुक्ति की प्रक्रिया चलती रहती है। अत: मन के परे अध्यवसाय या चेतना प्रवृत्ति का मूल स्रोत है- यह क्रिया शब्द से स्पष्ट होता है। इन सभी तथ्यों को प्रकाश में लाना शोधकार्य का मुख्य प्रयोजन है।
प्रस्तुत शोधकार्य की प्रक्रिया के अन्तर्गत क्रिया शब्द के आधारभूत मूल ग्रंथ आगम, नियुक्ति, चूर्णि, टीका, भाष्य तथा अन्यान्य व्याख्या ग्रंथों का अवलोकन किया गया है। क्रिया के सम्बन्ध में अन्य दार्शनिक विचारधाराओं तथा मनोविज्ञान, शरीरविज्ञान आदि का भी अध्ययन किया गया है। क्रियासम्बन्धी शोध-निबंध, क्रियाकोश आदि के उपयोग के साथ-साथ सम्बद्ध विषय के विद्वानों से चर्चा-परिचर्चा, तथ्य-संग्रह और अन्यान्य पुस्तकालयों का अवलोकन भी शोधकार्य की पूर्णता में उपयोगी रहा है। ___क्रिया के संदर्भ में अभी तक कोई शोधकार्य नहीं हुआ है। न ही इस विषय पर स्वतंत्र रूप से कुछ लिखा गया है। आगमों में भी क्रिया की चर्चा एक स्थान पर उपलब्ध नहीं है। वर्तमान युग के महान् दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ ने आगम-सम्पादन करते हुए क्रिया के संदर्भ में अवश्य अनेक ऐसी टिप्पणियां और भाष्य प्रस्तुत किये हैं जो चिन्तन की गहराई लिये हुए तथा शोधपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त, श्री मोहनलालजी बांठिया व श्रीचन्दजी चोरड़िया ने कठोर श्रम करके आगम व अन्य साहित्य में निहित क्रिया संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का क्रियाकोश के रूप में संकलन और संपादन किया है। उन्होंने आगमिक उद्धरणों का अनुवाद भी प्रस्तुत किया है इस दिशा में शोधकार्य करने की अत्यन्त आवश्यकता थी जिसे एक सीमा तक आकार देने का प्रयास प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के माध्यम से किया गया है। आशा है प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध से क्रिया के विषय में रही हुई कमी की एक पूर्ति होगी। प्रस्तुत शोधकार्य दार्शनिक और वैज्ञानिक तथ्यों के अनुशीलन
और तुलनात्मक अध्ययन पर टिका हुआ है। अत: विज्ञान और दर्शन के आधार पर इसमें 8 अध्यायों की योजना की गई है
XXXIII