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महानिशीथ-४/-/६७७
करते करते पाँच महिने के बाद महा भयानक बारह साल का अकाल पड़ा, तब वो साधु उस काल के दोष से, दोष की आलोचना प्रतिक्रमण किए बिना मौत पाकर भूत, यक्ष, राक्षस, पिशाच आदि व्यंतर देव के वाहनरूप से पेदा हुए । बाद में म्लेच्छ जाति में माँसाहार करनेवाले कुर आचरण कनरेवाले हुए । क्रुर परीणामवाले होने से साँतवी नारकी में पेदा हुए वहाँ से नीकलकर तीसरी चौबीसी में सम्यक्त्व पाएंगे । उसके बाद सम्यक्त्व प्राप्त हुए भव से तीसरे भव में चार लोग सिद्धि पाएंगे, लेकिन जो सर्वथा बड़े पाँचवे थे वो एक सिद्धि नहीं पाएंगे। क्योंकि वो एकान्त मिथ्यादृष्टि और अभव्य है । हे भगवंत ! जो सुमति है वो भव्य या अभव्य ? हे गौतम, वो भव्य है । हे भगवंत ! वो भव्य है तो मरके कहाँ उत्पन्न होंगे? हे गौतम ! परमाधार्मिक असुरो में उत्पन्न होगा ।
[६७८] हे भगवान ! भव्य जीव परमाधार्मिक असुर में पेदा होते है क्या ? हे गौतम ! जो किसी सज्जड़ राग, द्वेष, मोह और मिथ्यात्व के उदय से अच्छी तरह से कहने के बावजूद भी उत्तम हितोपदेश की अवगणना करते है । बारह तरह के अंग और श्रुतज्ञान को अप्रमाण करते है और शास्त्र के सद्भाव और भेद को नहीं जानते, अनाचार की प्रशंसा करते है, उसकी प्रभावना करते है, जिस प्रकार सुमति ने उन साधुओ की प्रशंसा और प्रभावना की कि वो कुशील साधु नहीं है, यदि यह साधु भी कुशील है तो इस जगत में कोई सुशील साधु नहीं । उन साधुओं के साथ जाकर मुजे प्रवज्या अंगीकार करने का तय है और जिस तरह के तुम निर्बुध्धी हो उस तरह के वो तीर्थंकर भी होंगे उस प्रकार बोलने से हे गौतम ! वो काफी बड़ा तपस्वी होने के बाद भी परमाधामी असुरो में उत्पन्न होंगे ।
- हे भगवंत ! परमाधार्मिक देव यहाँ से मरके कहाँ उत्पन्न होते है ? हे भगवंत ! परमाधार्मिक असुर देवता में से बाहर नीकलकर उस सुमति का जीव कहाँ जाएगा? हे गौतम! मंदभागी ऐसे उसने अनाचार की प्रशंसा और अभ्युदय करने के लिए पूरे सन्मार्ग के नाश को अभिनंदन किया, उस कर्म के दोष से अनन्त संसार उपार्जन किया । उसके कितने भव की उत्पत्ति कहे ? कई पुद्गल परावर्तन काल तक चार गति समान संसार में से जिसका नीकलने का कोई चारा नहीं तो भी संक्षेप से कुछ भव कहता हूँ वो सुन
इसी जम्बुद्वीप को चोतरक धीरे हुए वर्तुलाकार लवण समुद्र है । उसमें जो जगह पर सिंधु महानदी प्रवेश करती है उस प्रदेश के दक्षिण दिशा में ५५ योजन प्रमाणवाली वेदीका के बीच में साड़े बारह योजन प्रमाण हाथी के कुंभस्थल के आकार समान प्रति संतापदायक नाम की एक जगह है । वो जगह लवण समुद्र के जल से साढ़े सात योजन जितना ऊँचा है । वहाँ अति घोर गाढ़ अंधेरेवाली घड़ी संस्थान के आकारवाली छियालीस गुफा है । उस गुफा में दो-दो के बीच जलचारी मानव रहते है । जो वज्रऋषभनारच संघयणवाले, महाबल
और पराक्रमवाले साड़े बारह वेंत प्रमाण कायावाले, संख्याता साल के, आयुवाले, जिन्हे मद्य, माँस प्रिय है । वैसे स्वभाव से स्त्री लोलुपी, अति बूरे वर्णवाले, सुकुमार, अनिष्ट, कठिन, पथरीले देहवाले, चंडाल के नेता समान भयानक मुखवाले, सीह की तरह घोर नजरवाले, यमराजा समान भयानक, किसीको पीठ न दिखानेवाले, बीजली की तरह निष्ठुर प्रहार करनेवाले, अभिमान से मांधाता होनेवाले ऐसे वो अंडगोलिक मानव होते है ।
उनके शरीर में जो अंतरंग गोलिका होती है । उसे ग्रहण करके चमरी गाय के श्वेत