________________ आवश्यक निरूपण] [25 इस प्रकार यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक का स्वरूप जानना चाहिये / यह नोपागमद्रव्यावश्यक का निरूपण हुआ और साथ ही द्रव्यावश्यक की वक्तव्यता भी पूर्ण हुई। विवेचन--सूत्र में उभयव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक के तीसरे भेद का स्वरूप स्पष्ट करते हुए नोग्रागमद्रव्यावश्यक एवं द्रव्यावश्यक की वक्तव्यता का उपसंहार किया है / लोक में श्रेष्ठ साधुओं द्वारा आचरित एवं लोक में उत्तर-उत्कृष्टतर जिनप्रवचन में वर्णित होने से आवश्यक लोकोत्तरिक है। किन्तु श्रमणगुण से रहित स्वच्छन्दविहारी द्रव्यलिंगी साधुओं द्वारा किये जाने से वह प्रावश्यककर्म अप्रधान होने के कारण द्रव्यावश्यक है तथा भावशून्यता के कारण उसका कोई फल प्राप्त नहीं होता है / प्रस्तुत में 'नो' शब्द एकदेश प्रतिषेध अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। क्योंकि प्रतिक्रमणक्रिया रूप एकदेश में आगमरूपता नहीं है, किन्तु उसके ज्ञान का सद्भाव होने से आगम की एकदेशता है। इस प्रकार क्रिया की दृष्टि से आगम का प्रभाव और ज्ञान की दृष्टि से आगम का सद्भाव प्रकट करने से 'नो' शब्द में देशप्रतिषेधरूपता है। इस प्रकार सप्रभेद द्रव्यावश्यक का निरूपण जानना चाहिये। अब क्रमप्राप्त भावावश्यक का वर्णन करते हैं। भावावश्यक 23. से कि तं भावावस्सयं ? भावावस्सयं दुविहं पण्णत्तं / तं जहा-आगमतो य 1 पोआगमतो य 2 // [23 प्र.] भगवन् ! भावावश्यक का क्या स्वरूप है ? [23 उ.] आयुष्मन् ! भावावश्यक दो प्रकार का है-१. आगमभावावश्यक और 2. नोप्रागमभावावश्यक। विवेचन–प्रस्तुत में भेदों द्वारा भावावश्यक का स्वरूपवर्णन प्रारम्भ किया है। विवक्षित क्रिया के अनुभव से युक्त अर्थ को भाव कहते हैं। अतः यहाँ भाव शब्द विवक्षित क्रिया के अनभव से युक्त साध्वादि के लिये प्रयुक्त हना है और उनक और उत्तका आवश्यक भावावश्यक है। यह कथन भाव और भाववान् में अभेदोपचार की अपेक्षा किया गया है। जैसे ऐश्वर्य रूप इन्दन क्रिया के अनुभव से युक्त को भावतः इन्द्र कहा जाता है अथवा विवक्षित क्रिया के अनुभव रूप भाव को लेकर जो आवश्यक होता है वह भावावश्यक है। इस भावावश्यक के दो भेद हैं / क्रम से जिनका वर्णन इस प्रकार है-- प्रागमभावावश्यक 24. से कि तं आगमतो भावावस्सयं ? आगमतो भावावस्सयं जाणए उवउत्ते। से तं आगमतो भावावस्सयं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org