________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [323 [392 प्र.] भगवन् ! क्षेत्रपल्योपम का क्या स्वरूप है ? [392 उ.] गौतम ! क्षेत्रपल्योपम दो प्रकार का कहा है-सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम / 363. तत्थ णं जे से सुहुमे से ठप्पे / [393] उनमें से सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम स्थापनीय है। अर्थात् उसका यहाँ वर्णन नहीं किया जाएगा। किन्तु 394. तत्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं,जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहिय-बेहिय-तेहिय० जाव भरिए वालग्गकोडोणं / ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेज्जा, गो वातो हरेज्जा, जाव णो पूइत्ताए हन्वमागच्छेज्जा / जे णं तस्स पल्लस्स आगासपदेसा तेहि वालागेहि अप्फुना ततो गं समए समए गते एगमेगं आगासपएसं अवहाय जावतिएणं कालेणं से पल्ले खोणे जाव निट्ठिए भवइ / से तं वावहारिए खेत्तपलिओवमे / एएसि पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया / तं वावहारियस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं // 113 // [394] उन दोनों में से व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये योजन अायाम-विष्कम्भ पोर एक योजन ऊंचा तथा कुछ अधिक तिगनी परिधि बाला धान्य मापने के पल्य के समान पल्य हो। उस पल्य को दो, तीन यावत् सात दिन के उगे बालानों को कोटियों से इस प्रकार से भरा जाए कि उन बालानों को अग्नि जला त सके, वायु उड़ा न सके आदि यावत् उनमें दुर्गन्ध भी पैदा न हो। तत्पश्चात् उस पल्य के जो ग्राकाशप्रदेश बालारों से व्याप्त हैं, उन प्रदेशों में से समय-समय (प्रत्येक समय) एक-एक आकाशप्रदेश का अपहरण किया जाए-- निकाला जाए तो जितने काल में वह पल्य खाली यावत् विशुद्ध हो जाए, वह एक व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम है। इस व्यावहारिक क्षेत्र-पल्योपम की दस गणित कोटाकोटि का एक व्यावहारिक क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है। अर्थात दस कोटाकोटि व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपमों का एक व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम होता है / 113 विवेचन-यहाँ व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम का प्रमाण बताकर व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम का स्वरूप बताया है। पूर्व में जो व्यावहारिक उद्धारपल्योपम और अद्धापल्योपम का स्वरूप बताया है, उन्हीं के समान बालानकोटियों से पल्य को भरने की प्रक्रिया यहाँ भी ग्रहण की गई है। किन्तु उनसे इसमें अन्तर यह है कि पूर्व के दोनों पल्यों में समय की मुख्यता है, जबकि यहाँ क्षेत्र मुख्य है। इस प्रकार से व्यावहारिक क्षेत्रपल्योपम और क्षेत्र सागरोपम का स्वरूप बतलाने के बाद अब उसके प्रयोजन का कथन करते हैं। जैसे कोई एक योजन प्राय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org