________________ 428] [अनुयोगद्वारसूत्र 2. हेत्वाभास के बल से प्रवृत्त होने के कारण परसमय अहेतु रूप भी है / जैसे—'नास्त्येवात्मा अत्यन्तानुपलब्धेः'प्रात्मा नहीं है क्योंकि उसकी अत्यन्त अनुपलब्धि है / यहाँ अत्यन्त अनुपलब्धि हेतु हेत्वाभास है / हेत्वाभास होने का कारण यह है कि प्रात्मा के ज्ञानादि गुणों की उपलब्धि होती है। जैसे घटादिकों के गुणों-रूपादि की उपलब्धि होने से घटादि की मत्ता है, उसी प्रकार जीव के ज्ञानादिक गुणों की उपलब्धि होने से उसकी सत्ता है।' 3. परसमयवक्तव्यता असदर्थ का प्रतिपादन करने वाली भी है / क्योंकि परसमय असद्भाव रूप एकान्त क्षणभंग ग्रादि असदर्थ का प्रतिपादन करता है / एकान्ततः क्षणभंग प्रादि सिद्धान्त असद्रूप इसलिए है कि उसमें युक्ति, प्रमाण आदि से विरोध है / जैसे-एकान्ततः पदार्थ को क्षणभंगुर मानने पर धर्म-अधर्म का उपदेश, सुकृत-दुष्कृत, परलोक आदि में गमन तथा इसी प्रकार से अन्य लोकव्यवहार नहीं बन सकते हैं। तथा 4. एकान्त रूप से शून्यता का प्रतिपादन करने वाला होने से परसमय में किसी भी प्रकार की क्रिया करना संभवित नहीं और तब क्रिया करने वाले कर्ता का भी प्रभाव मानना पड़ेगा / क्योंकि सर्वशून्यता में जब समस्त पदार्थ ही शून्य रूप हैं तो यह स्वाभाविक है कि कर्ता और क्रिया आदि सभी शून्यरूप होंगे / यदि ऐसा न माना जाये तो सर्वशून्यता का सिद्धान्त ही नहीं बन सकता है। इसी कारण परसमय असद्भाव रूप का प्रतिपादक होने से उसकी वक्तव्यता नहीं मानी जा सकती है। 5. परसमयबक्तव्यता इसलिए भी नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि वह उन्मार्ग--परस्पर विरुद्ध वचनों की प्रतिपादक है। जैसे—परसमय कभी तो कहता है कि स्थावर और अस रूप किसी भी प्राणी की हिंसा न करे तथा समस्त प्राणियों को अपना जैसा ही माने / इस प्रकार की प्रवृत्ति करने वाला धार्मिक है।' किन्तु साथ ही ऐसा भी कहता है कि अश्वमेधयज्ञ करते समय 5097 पशुओं की बलि करना चाहिये / इस प्रकार जब परसमय में स्पष्ट रूप से पूर्वापर उन्मार्गता है तब उसकी वक्तव्यता मान्य कैसे की जा सकती है ? 6. परसमय उपदेश रूप भी नहीं है—अनुपदेश (कुत्सित उपदेश) रूप है / क्योंकि उपदेश जीवों को अहित से छुड़ाकर हित में प्रवृत्ति कराने वाला होता है, परन्तु परसमय के उपदिष्ट सिद्धान्त जीवों को अहित की ओर ले जाते हैं। जैसे-जब सभी कुछ क्षणिक है तो कौन विषयादिकों का ---मनुषोग. मलधारीयावृत्ति पत्र 244 2. नाणाईण गुणाणं अणुभवप्रो होइ जंतुणो सत्ता / जह रूवाइगुणाणं उवलंभागो घडाईण / / 1. धम्माधम्मुवएसो कयाकयं परभवाइगमणं च / ___सव्वावि हु लोयठिई न घडइ एगतखिणयम्मी // 3. न हिस्यात् सर्वभूतानि स्थावराणि चराणि च / वभूतानि यः पश्यति स धार्मिकः / / 4. षट् सहस्राणि युज्यन्ते पशूना मध्यमेऽहनि / अश्वमेधस्य वचनान्न्यूनानि पशुभिस्त्रिभिः // --अनुयोग. मलधारीयावृत्ति पत्र 244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org