Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 495
________________ आय निरूपण [445 [560 प्र.] भगवन् ! द्रव्य-प्राय का क्या स्वरूप है ? [560 उ.] अायुष्मन् ! द्रव्य-प्राय के दो भेद इस प्रकार हैं-१. आगम से, 2. नोपागम से / प्रागम-द्रव्य-प्राय 561. से कि तं पागमतो दवाए ? जस्स णं पाए ति पयं सिक्खितं ठितं जाव अणुवओगो दवमिति कटु, जाव जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइया ते दवाया, जाव से तं आगमओ दवाए। [561 प्र.] भगवन् ! प्रागम से द्रव्य याय का क्या स्वरूप है ? [561 उ. आयुष्मन् ! जिसने प्राय यह पद सीख लिया है, स्थिर कर लिया है किन्तु उपयोग रहित होने से द्रव्य है यावत् जितने उपयोग रहित हैं, उतने ही पागम से द्रव्य आय हैं, यह आगम से द्रव्य-पाय का स्वरूप जानना चाहिये। नोग्रागमद्रव्य-प्राय 562. से कि तं नोआगमओ दवाए ? नोआगमनो दन्वाए तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-जाणयसरीरदवाए भवियसरीरदव्वाए जाणयसरीरभवियसरीरवइरिते दवाए। [562 प्र.] भगवन् ! नोग्रागमद्रव्य-बाय का क्या स्वरूप है ? [562 उ.] आयुष्मन् ! नोमागमद्रव्य-पाय के तीन प्रकार हैं / यथा-१. ज्ञायकशरीरद्रव्यआय, 2. भव्यशरीरद्रव्य-आय, 3. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-पाय / 563. से कि तं जाणयसरीरदवाए ? जाणयसरीरदब्वाए आयपयत्थाहिकारजाणगस्स जं सरीरगं ववगय-चुत-चतिय-चत्तदेहं सेसं जहा दव्वज्झयणे, जाव से तं जाणयसरीरदवाए / [563 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरद्रव्य-पाय किसे कहते हैं ? |563 उ.] आयुष्मन् ! प्राय पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित त्यक्त आदि शरीर द्रव्याध्ययन की वक्तव्यता जैसा ही ज्ञायकशरीरनोग्रागमद्रव्य-पाय का स्वरूप जानना चाहिये। 564. से कि तं भवियसरीरदवाए ? भवियसरीरदवाए जे जीवे जोणीजम्मणणिक्खंते सेसं जहा दव्वज्शयणे, जाव से तं भवियसरीरदवाए। [564 प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्य-प्राय का क्या स्वरूप है ? [564 उ.] आयुष्मन् ! समय पूर्ण होने पर योनि से निकलकर जो जन्म को प्राप्त हुप्रा आदि भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के वर्णन के समान भव्यशरीरद्रव्य-आय का स्वरूप जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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