Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 501
________________ क्षपणा निरूपण] [451 [587 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [587 उ.] आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा का स्वरूप ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-पाय के समान जानना चाहिये / इस प्रकार से नोनागमद्रव्यक्षपणा और साथ ही द्रव्यक्षपणा का वर्णन पूर्ण हुना। विवेचन--यहां सूत्र 581 से 587 तक में अध्ययन के अतिदेश द्वारा नाम, स्थापना और द्रव्यक्षपणा का वर्णन किया है / अतः विशेष विवेचन की अपेक्षा नहीं है / भावक्षपणा 588. से कि तं भावझवणा? भावज्झवणा दुविहा पण्णत्ता / तं जहा -- प्रागमतो य णोआगमतो य / {588 प्र.] भगवन् ! भावक्षपणा का क्या स्वरूप है / | 588 उ.] आयुष्मन् ! भावक्षपणा दो प्रकार की है / यथा---१. आगम से 2. नोग्रागम से / 586. से कि तं आगमओ भावज्शवणा? आगमओ भावज्झवणा झवणापयत्थाहिकारजाणए उवउत्ते / से तं आगमतो भावज्झवणा / [589 प्र.] भगवन् ! आगमभावक्षपणा का क्या स्वरूप है। [589 उ.] आयुष्मन् ! क्षपणा इस पद के अर्थाधिकार का उपयोगयुक्त ज्ञाता आगम से भावक्षपणा रूप है। 560. से कि तं णोआगमतो भावझवणा? णोआगमतो भावज्झवणा दुविहा पण्णता / तं जहा—पसत्था य अप्पसत्था य / [590 प्र.] भगवन् ! नोयागमभावक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [590 उ.| आयुष्मन् ! नोप्रागमभावक्षपणा दो प्रकार की है / यथा--१. प्रशस्तभावक्षपणा 2. अप्रशस्तभावक्षपणा / 561. से कि तं पसस्था ? पसस्था चउन्विहा पण्णत्ता / तं जहा–कोहज्झवणा माणज्झवणा मायज्झवणा लोभज्झवणा। से तं पसत्था / [591 प्र.] भगवन् ! प्रशस्तभावक्षपणा का क्या स्वरूप है ? [591 उ.] अायुष्मन् ! नोमागमप्रशस्तभावक्षपणा चार प्रकार की है। यथा-१. कोधक्षपणा 2. मानक्षपणा, 3. मायाक्षपणा और लोभक्षपणा / यही प्रशस्तभावक्षपणा का स्वरूप है। 562. से कि त अप्पसत्था ? अप्पसत्था तिविहा पण्णत्ता / तं जहा-नाणज्शवणा दंसणज्झवणा चरित्तज्झवणा / से तं अप्पसस्था। से तं नोआगमतो भावज्झवणा / से तं भावझवणा / से तं झवणा / से तं ओहनिष्फण्णे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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