________________ सामायिक निरूपण] [459 विवेचन-सूत्र में निक्षेपनियुक्ति-अनुगम का स्वरूप पूर्ववत् जानने का संकेत किया है। जिसका आशय यह है नाम-स्थापनादि रूप निक्षेप की नियुक्ति के अनुगम को अथवा निक्षेप की विषयभूत बनी हुई नियुक्ति के अनुगम को निक्षेपनियुक्त्यनुगम कहते हैं। तात्पर्य यह है कि पहले आवश्यक और सामायिकादि पदों की नाम, स्थापनादि निक्षेपों द्वारा जो ओर जैसी व्याख्या की गई है, वैसी ही व्याख्या निक्षेपनियुक्त्यनुगम में की जाती है। उपोद्घातनियुक्त्यनुगम 604. से किं तं उघायनिज्जुत्तिअणुगमे ? उवधायनिज्जुत्तिप्रणुगमे इमाहिं दोहिं गाहाहि अणुगंतव्वे / तं जहा उद्देसे 1 निदेसे य 2 निग्गमे 3 खेत्त 4 काल 5 पुरिसे य 6 / कारण 7 पच्चय 8 लक्खण 9 पये 10 समोयारणा 11 ऽणुमए 12 // 133 / / किं 13 कइविहं 14 कस्य 15 कहिं 16 केसु 17 कहं 18 किच्चिरं हवइ कालं 19 कई 20 संतर 21 मविरहितं 22 भवा 23 ऽऽगरिस 24 फासण 25 निरुत्ती 26 // 134 // से तं उवघातनिज्जुत्तिअणुगमे। [604 प्र.] भगवन् ! उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम का क्या स्वरूप है ? [604 उ.] आयुष्मन् ! उपोद्घातनियुक्ति अनुगम का स्वरूप गाथोक्तक्रम से इस प्रकार जानना चाहिये-१. उद्देश, 2. निर्देश, 3. निर्गम, 4. क्षेत्र, 5, काल, 6. पुरुष, 7. कारण, 8. प्रत्यय, 9. लक्षण 10. नय, 11. समवतार, 12. अनुमत, 13. किम-क्या, 14. कितने प्रकार का, 15. किसको, 16. कहाँ पर, 17. किसमें, 18. किस प्रकार---कैसे, 16. कितने काल तक, 20. कितनी, 21. अंतर (विरहकाल), 22. अविरह (निरन्तरकाल), 23. भव, 24. आकर्ष, 25. स्पर्शना और 26. नियुक्ति / अर्थात् इन प्रश्नों का उत्तर उपोद्घातनियुक्त्यनुगम रूप है / विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम करने सम्बन्धी प्रश्नों का उल्लेख किया है उपोद्घात नियुक्त्यनुगम-उद्देश प्रादि को व्याख्या करके सूत्र की व्याख्या करने को कहते हैं / गाथोक्त क्रमानुसार सामायिक के माध्यम से इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है 1. उद्देश सामान्य रूप से कथन करने को उद्देश कहते हैं। जैसे-'अध्ययन / ' 2. निर्देश-उद्देश का विशेष नामोल्लेखपूर्वक अभिधान-कथन निर्देश कहलाता है। जैसे--- सामायिक / 3. निर्गम-वस्तु के निकलने के आधार-स्रोत का कथन निर्गम है / जैसे-सामायिक कहाँ से निकली? अर्थतः तीर्थकरों से और सूत्रत: गणधरों से सामायिक निकली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org