________________ 44) [अनुयोगद्वारसूत्र इस प्रकार से ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-आय का वर्णन जानना चाहिये और इसके साथ ही नोग्रागमद्रव्य-प्राय एवं द्रव्य-प्राय की वक्तव्यता भी पूर्ण हुई। विवेचन—सूत्र संख्या 558 से 574 तक ओघनिष्पन्न निक्षेप के तीसरे प्रकार प्राय का नाम, स्थापना और द्रव्य दृष्टि से विचार किया गया है / नाम, स्थापना और ज्ञायकशरीर तथा भव्यशरीर रूप द्रव्य आय का वर्णन तो द्रव्य-यावश्यक तक के इन्हीं भेदों के समान है। लेकिन ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-प्राय के वर्णन का रूप भिन्न है। क्योंकि प्राय: स्थल दृश्य पदार्थों की प्राप्तिलाभ को प्राय माना जाता है और सामान्यत: प्राप्त करने योग्य अथवा प्राप्त होने योग्य पदार्थ सजीव अजीव और मिश्र अवस्था वाले होते हैं। उनके अपेक्षादृष्टि से लौकिक, कुप्रवाचनिक और लोकोत्तरिक यह तीन-तीन भेद होते हैं / लौकिक प्राय आदि का स्वरूप सूत्र में स्पष्ट है। भाव-प्राय 575. से कि तं भावाए ? भावाए दुविहे पण्णते / तं जहा- आगमतो य नोआगमतो य / (575 प्र.] भगवन् ! भाव-प्राय का क्या स्वरूप है ? [575 उ.] आयुष्मन् ! भाव-पाय के दो प्रकार हैं / यथा—१. पागम से 2. नोग्रागम से / 576. से कि तं आगमतो भावाए ? आगमतो भावाए जाणए उवउत्ते / से तं आगमतो भावाए / [576 प्र.] भगवन् ! अागमभाव-प्राय का क्या स्वरूप है ? [586 उ.] अायुष्मन् ! आयपद के ज्ञाता और साथ ही उसके उपयोग से युक्त जीव भागमभाव-पाय हैं। 577. से कि तं नोमागमतो भावाए ? नोआगमतो भावाए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-पसत्थे य अप्पसत्थे य / [577 प्र.] भगवन् ! नोग्रागमभाव-प्राय का क्या स्वरूप है ? [577 उ.] आयुष्मन् ! नोग्रागमभाव-पाय के दो प्रकार हैं, यथा-१. प्रशस्त और अप्रशस्त / 578. से कि तं पसत्थे ? पसत्थे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा–णाणाए दंसणाए चरित्ताए / से तं पसत्थे / [578 प्र.] भगवन् ! प्रशस्त नोग्रागमभाव-पाय किसे कहते हैं ? [578 उ.] अायुष्मन् ! प्रशस्त नोग्रागमभाव-पाय के तीन प्रकार हैं। यथा--१. ज्ञान-पाय, 2. दर्शन-पाय, 3. चारित्र-प्राय / 576. से कि तं अपसत्थे ? अपसत्थे चउविहे पण्णत्ते / तं जहाकोहाए माणाए मायाए लोभाए / से तं अयसत्थे / से तं णोआगमतो भावाए / से तं भावाए / से तं आये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org