________________ 432 [अनुयोगद्वारसूत्र समोयारेणं अद्धमाणीए समोयरइ आयभावे य। अद्धमाणी आयसमोयारेणं प्रायभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं माणीए समोयरति आयभावे य। से तं जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दवसमोयारे / से तं नोप्रागमओ दव्वसमोयारे / से तं दध्वसमोयारे। [530-2] अथवा ज्ञायकशरीरभव्य शरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार दो प्रकार का है-- आत्मसमवतार और तदुभयसमवतार / जैसे प्रात्मसमवतार से चतुष्पष्टिका आत्मभाव में रहती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा द्वात्रिंशिका में भी और अपने निजरूप में भी रहती है / द्वात्रिंशिका प्रात्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में और उभयसमवतार की अपेज्ञा षोडशिका में भी रहती है और प्रात्मभाव में भी रहती है। षोडशिका आत्मसमवतार से प्रात्मभाव में समवतीर्ण होती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा अष्टभागिका में भी तथा अपने निजरूप में भी रहती है। अष्टभागिका अात्मसमवतार की अपेक्षा प्रात्मभाव में तथा तदुभयसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका में भी समवतरित होती है और अपने निज स्वरूप में भी समवतरित होती है। आत्मसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका आत्मभाव में और तदुभयसमवतार से अर्धमानिका में समवतीर्ण होती है एवं प्रात्मभाव में भी / आत्मसमवतार से अर्धमानिका पात्मभाव में एवं तदुभयसमवतार की अपेक्षा मानिका में तथा आत्मभाव में भी समवतीर्ण होती है। यह ज्ञाय कशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार का वर्णन है। इस तरह नोश्रागमद्रव्यसमवतार और द्रव्यसमवतार की प्ररूपणा पूर्ण हुई। विवेचन--परसमवतार की असंभविता को यहाँ ध्यान में रखकर प्रकारान्तर से तव्यतिरिक्त नोप्रागमद्रव्य समवतार की द्विविधता का निरूपण किया है। प्रत्येक द्रव्य स्वस्वरूप की अपेक्षा स्वयं में ही रहता है लेकिन व्यवहार की अपेक्षा यह भी माना जाता है कि अपने से विस्तृत में समाविष्ट होता है / लेकिन उस समय भी उसका स्वतन्त्र अस्तित्व होने से वह स्वरूप में भी रहेगा ही। मानी, अर्धमानी, चतुर्भागिका आदि मगध देश के माप हैं। इनका प्रमाण पूर्व में बताया जा चुका है। क्षेत्रसमवतार 531. से कि तं खेत्तसमोयारे ? खेत्तसमोयारे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा--आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य / भरहे वासे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं जंबुद्दीवे समोयरति आयभावे य / जंबुद्दीवे दीवे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं तिरियलोए समोयरति आयभावे य / तिरियलोए प्रायसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं लोए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org