Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 483
________________ समवतार निरूपण] [433 समोयरति आयभावे य'। से तं खेत्तसमोयारे। | 531 प्र.] भगवन् ! क्षेत्रसमवतार का क्या स्वरूप है ? [53 1 उ.] अायुष्मन् ! क्षेत्रसमवतार का दो प्रकार से प्रतिपादन किया गया है। यथा१. आत्मसमवतार, 2. तदुभयसमवतार / प्रात्मसमवतार की अपेक्षा भरतक्षेत्र प्रात्मभाव (अपने) में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप में भी रहता है और प्रात्मभाव में भी रहता है / अात्मसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा तिर्यकलोक (मध्यलोक) में भी समवतरित होता है और प्रात्मभाव में भी। आत्मसमवतार से तिर्यकलोक प्रात्मभाव में समवतीर्ण होता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा लोक में समवतरित होता है और आत्मभाव-निजरूप में भी / यही क्षेत्रसमवतार का स्वरूप है / विवेचन- यहाँ क्षेत्रसमवतार का स्वरूप स्पष्ट किया है। लघु क्षेत्र के प्रमाण को यथोत्तर बृहत् क्षेत्र में समवतरित किये जाने को क्षेत्रसमवतार कहते हैं / उदाहरणार्थ दिये गये दृष्टान्तों का अर्थ सुगम है। उत्तरोत्तर भरतक्षेत्र, जम्बूद्वीप, तिर्यकलोक आदि क्षेत्र बृहत् प्रमाण वाले क्षेत्र में भी समवतरित होते हैं / कालसमवतार 532. से कि तं कालसमोयारे ? कालसमोयारे दुविहे पण्णते / तं०-आयसमोयारे य तदुभयसमोयारे य। समए आयसमोयारेणं प्रायभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं आवलियाए समोयरति आयभावे य / एवं आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयणे संवच्छरे जुगे वाससते वाससहस्से वाससतसहस्से पुध्वंगे पुवे तुडियंगे तुडिए अडडंगे अडडे अववंगे अववे हुहुयंगे हुहुए उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे लिणंगे पलिणे अस्थिनिउरंगे अथिनिउरे अउयंगे अउए गउयंगे गउए पउयंगे पउए चुलियो चूलिया सोसपहेलियंगे सीसपहेलिया पलिओवमे सागरोवमे आयसमोयारेणं आयभावे समोतरति, तदुभयसमोयारेणं ओसप्पिणि-उस्स प्पिणीसु समोयरति आयभावे य, ओसप्पिणिउस्स प्पिणीनो आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, तदुभयसमोयारेणं पोग्गलपरियट्टे समोयरंति प्रायभावे य / पोग्गलपरियट्टे आयसमोयारेणं आयभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेणं तीतद्धाअणागतद्धासु समोयरति आयभावे य; तीतद्धा-अणागतद्धाओ आयसमोयारेणं प्रायभावे समोयरंति, तदुभयसमोयारेणं सम्वद्धाए समोयरंति प्रायभावे य / से तं कालसमोयारे। 1. लोए पायसमोयारेणं प्रायभावे समोयरति, तदुभयसमोयारेण अलोए समोयरति प्रायभावे य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553