________________ 438] [अनुयोगद्वारसूत्र नाम-स्थापना-अध्ययन 537. गाम-ढवणाओ पुस्ववणियानो। [537] नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववणित (नाम और स्थापना आवश्यक) जैसा ही जानना चाहिये / / विवेचन-सूत्र में नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप बताने के लिये नाम और स्थापना आवश्यक का प्रतिदेश किया है और अतिदेश के संकेत के लिये सूत्र में 'पुत्ववणियानो' पद दिया है। द्रव्य-अध्ययन 538. से कि तं दब्वज्झयणे ? दम्वन्सयणे दुबिहे पण्णते / तं जहा-पागमओ य गोमागओ य / [538 प्र.] भगवन् ! द्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? [538 उ.] आयुष्मन् ! द्रव्य-अध्ययन के दो प्रकार हैं, यथा----१. पागम से ग्रौर 2. नोआगम से। 539. से कि तं आगमतो दव्यज्झयणे ? आगमतो दग्वज्झयणे जस्स णं अज्शयणे ति पदं सिक्खितं ठितं जितं मितं परिजितं जाव जावया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दश्वज्झयणाई / एवमेव ववहारस्स वि / संगहस्स णं एगो वा अगेगो वा तं वेव भाणियव्वं जाव से तं आगमतो दन्वज्झयणे। 539 प्र.] भगवन् ! आगम से द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है ? (539 उ. आयुष्मन् ! जिसने 'अध्ययन' इस पद को सीख लिया है, अपने (हृदय) में स्थिर कर लिया है, जित, मित और परिजित कर लिया है यावत् जितने भी उपयोग से शून्य हैं, वे आगम से द्रव्य-अध्ययन हैं। इसी प्रकार (नगमनय जैसा ही) व्यवहारनय का मत है, संग्रहनय के मत से एक या अनेक आत्माएँ एक प्रागमद्रव्य-अध्ययन हैं, इत्यादि समग्र वर्णन आगमद्रव्य-आवश्यक जैसा ही यहाँ जानना चाहिये / यह प्रागमद्रव्य-अध्ययन का स्वरूप है। 540. से कि तं णोआगमतो दवज्सयणे? णोप्रागमतो दन्वज्झयणे तिविहे पण्णत्ते / तं जहा-जाणयसरीरदब्वज्झयणे भवियसरीरदव्यज्मयणे जाणयसरीरभवियसरीरवतिरित्ते दव्वज्झयणे / [540 प्र.] भगवन् ! नोग्रागमद्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? [540 उ.] आयुष्मन् ! नोग्रागमद्रव्य-अध्ययन तीन प्रकार का कहा गया है / यथा१. ज्ञायकशरीरद्रव्य-अध्ययन, 2. भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन 3. ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यअध्ययन / 531. से कि तं जाणगसरीरदध्वज्झयणे? जाणगसरीरदब्बज्झयणे अज्झयणपयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगत-चुत-चइय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org