Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 442
________________ 392] [अनुयोगद्वारसूत्र खंधपएसो 3, जीवपएसो वि सिया धम्मपएसो सिया अधम्मपएसो सिया आगासपएसो सिया खंधपएसो 4, खंधपएसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो 5, एवं ते अणवस्था भविस्सई, तं मा भणाहि-भइयवो पदेसो, भणाहि-धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे, अहम्मे पदेसे से पदेसे अहम्मे, आगासे पदेसे से पदेसे आगासे, जोव पदेसे से पदेसे णोजीवे, खंधे पदेसे से पदेसे पोखंधे। एवं वयंतं सद्दणयं समभिरूढो भणति—जं भणसि-धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे जाव खंधे पदेसे से पदेसे नोखंधे तं न भवइ, कम्हा? एत्थ दो समासा भवंति, तं जहा-तप्पुरिसे य कम्मधारए य, तं ण णज्जइ कतरेणं समासेणं भणसि-किं तप्पुरिसेणं कि कम्मधारएणं? जइ तपूरिसेणं भणसि तो मा एवं भजाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो घिसेसओ भणाहि-धम्मे य से पसे य से से पदेसे धम्मे, अहम्मे य से पदेसे य से से पदेसे अहम्मे, आगासे य से पदेसे य से से पदेसे आगासे, जीवे य से पदेसे य से से पदेसे नोजोवे, खंबे य से पदेसे य से से पदेसे नोखंधे / एवं वयंतं संपयं समभिरूढं एवंभूओ भणइ-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगगहणगहितं देसे वि मे अवत्थू पदेसे वि मे अवत्थू / से तं पदेसदिट्टतेणं / से तं णयापमाणे। [476 प्र.] भगवन् ! प्रदेशदृष्टान्त द्वारा नयों के स्वरूप का प्रतिपादन किस प्रकार होता है ? [476 उ.] अायुष्मन् ! प्रदेशों के दृष्टान्त द्वारा नयों का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिए नैगमनय के मत से छह द्रव्यों के प्रदेश होते हैं / जैसे ----1. धर्मास्तिकाय का प्रदेश, 2. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, 3. आकाशास्तिकाय का प्रदेश, 4. जीवास्तिकाय का प्रदेश, 5. स्कन्ध का प्रदेश और 6. देश का प्रदेश। ऐसा कथन करने वाले नैगमनय से संग्रहनय ने कहा--जो तुम कहते हो कि छहों के प्रदेश हैं, वह उचित नहीं है। क्यों (नहीं है) ? इसलिये कि जो देश का प्रदेश है, वह उसी द्रव्य का है। इसके लिये कोई दृष्टान्त है ? हाँ दृष्टान्त है। जैसे मेरे दास ने गधा खरीदा और दास मेरा है तो गधा भी मेरा है। इसलिये ऐसा मत कहो कि छहों के प्रदेश हैं, यह कहो कि पांच के प्रदेश हैं / यथा-१. धर्मास्तिकाय का प्रदेश, 2. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, 3. आकाशास्तिकाय का प्रदेश, 4. जीवास्तिकाय का प्रदेश और 5. स्कन्ध का प्रदेश / इस प्रकार कहने बाले संग्रहनय से व्यवहारनय ने कहा-तुम कहते हो कि पांचों के प्रदेश हैं, वह सिद्ध नहीं होता है। क्यों (सिद्ध नहीं होता है) ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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