________________ 408 [अनुयोगद्वारसूत्र 9. नियुक्ति की संख्या को नियुक्तिसंख्या कहते हैं / 10. व्याख्या के उपायभूत सत्पदप्ररूपण अथवा उपक्रम आदि अनुयोगद्वार कहलाते हैं / इनकी संख्या को अनुयोगदारसंख्या कहते हैं / 11. अध्ययनों के अंशविशेष को उद्देशक कहते हैं। इनकी संख्या उद्देशकसंख्या कहलाती है। 12. शास्त्र के भागविशेष को अध्ययन कहते हैं / इनकी संख्या अध्ययनसंख्या है। 13. अध्ययनों के समूह रूप शास्त्रांश का नाम श्रुतस्कन्ध है। इनकी संख्या श्रुतस्कन्धसंख्या कहलाती है। 14. अंगों की संख्या को अंगसंख्या कहते हैं। आचारांग आदि आगमों का नाम अंग है। इस प्रकार से कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या का निरूपण जानना चाहिये / दृष्टिवादश्रुतपरिमारगसंख्यानिरूपरण। __ 495. से कि तं दिद्विवायसुयपरिमाणसंखा ? दिट्ठिवायसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता / तं जहा–पज्जवसंखा भाव अणोगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुडियासंखा पाहुडपाहुडियासंखा वत्थुसंखा पुन्वसंखा / से तं विट्ठियायसुयपरिमाणसंखा / से तं परिमाणसंखा। [495 प्र.] भगवन् ! दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ? [495 उ.] प्रायुष्मन् ! दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या के अनेक प्रकार कहे गये हैं। यथापर्यवसंख्या यावत् अनुयोगद्वारसंख्या, प्राभृतसंख्या, प्रामृतिकासंख्या, प्राभृतप्राभृतिकासंख्या, वस्तुसंख्या और पूर्वसंख्या / इस प्रकार से दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का स्वरूप जानना चाहिये। __यही परिणामसंख्या का निरूपण है। विवेचन इस सूत्र में दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का प्रतिपादन किया है। जिसमें पर्यवसंख्या से लेकर अनुयोगद्वारसंख्या तक के नाम तो कालिकथुतपरिमाणसंख्या के अनुरूप हैं और शेष प्रामृत आदि अधिक नामों का उल्लेख सूत्र में किया है। ये प्राभृत आदि सब पूर्वान्तर्गत श्रुताधिकार विशेष हैं।' इस प्रकार से परिमाणसंख्या का निर्देश करने के बाद अब ज्ञानसंख्या के स्वरूप का वर्णन किया जाता है। ज्ञानसंख्यानिरूपण 466. से कि तं जाणणासंखा? जाणणासंखा जो जं जाणइ सो तं जाणति, तं जहा-सह सहिओ, गणियं गणिओ, निमित्तं नेमित्तिओ, कालं कालनाणी, वेज्जो वेज्जियं / से तं जाणणासंखा। 1. प्राभृतादयः पूर्वान्तर्गताः श्रुताधिकारविशेषाः। ---अनुयोगद्वार, टीका पृ. 234 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org