________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [411 [504 उ.] आयुष्मन् ! परीतानन्त तीन प्रकार का प्रतिपादन किया गया है। यथा—१. जघन्य परीतानन्त, 2. उत्कृष्ट परीतानन्त और 3 अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) परीतानन्त / 505. से किं तं जुत्ताणतए ? जुत्ताणतए तिविहे पण्णत्ते / तं जहा–जहण्णए उक्कोसए अजहण्णमणुक्कोसए। [505 प्र.] भगवन् ! युक्तानन्त किसे कहते हैं ? [505 उ.] आयुष्मन् ! युक्तानन्त के तीन प्रकार कहे हैं। वे इस प्रकार-१. जघन्य युक्तानन्त, 2. उत्कृष्ट युक्तानन्त 3. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) युक्तानन्त / 506. से कि तं अर्थताणतए ? अणंताणतए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-जहण्णए य अजहण्णमणुक्कोसए य / [506 प्र.] भगवन् ! अनन्तानन्त का क्या स्वरूप है ? [506 उ.] अायुष्मन् ! अनन्तानत्त के दो प्रकार कहे हैं। यथा--१. जघन्य अनन्तानन्त और 2. अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अनन्तानन्त / विवेचन-उक्त प्रश्नोत्तरों में गणना संख्या के संख्यात, असंख्यात और अनन्त इन तीन मुख्य भेदों के अवान्तर भेद-प्रभेदों का निरूपण किया है। संख्यात के तो जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ये तीन अवान्तर भेद हैं। लेकिन असंख्यात और अनन्त के मुख्य तीन अवान्तर भेदों के नामों में परीत पौर युक्त तो समान हैं किन्तु तीसरे भेद का नाम असंख्यातासंख्यात और अनन्तानन्त है / परीतासंख्यात, यूक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट होने से असंख्यात के कुल नौ भेद हैं। परोतानन्त और युक्तानन्त भी जघन्य आदि तीन-तीन भेद वाले हैं। किन्तु अनन्तानन्त में उत्कृष्ट अनन्तानन्त असंभव होने से यह भेद नहीं बनता है। अतएव अनन्त के पाठ ही भेद होते हैं। उक्त कथन का संक्षिप्त प्रारूप इस प्रकार है त्रिविध संख्यात 1. जघन्य 3. उत्कृष्ट 2. मध्यम नवविध असंख्यात 1 परीतासंख्याल 2 युक्तासंख्यात 3 असंख्यातासंख्यात 1 जघन्य परीतासं. 2 मध्यम परीतासं. 3 उत्कृष्ट परीतासं. 4 जघन्य युक्तास. 5 मध्यम युक्तासं. 6 उत्कृष्ट युक्तासं. 7 जघन्य असंख्यातासं. 8 मध्यम 2 उत्कृष्ट , , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org