Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 451
________________ प्रमाणाधिकार निरूपण]] (401 चय-चइत्त-चत्तदेहं का अर्थ-विपाकवेदन द्वारा आयुकर्म के क्षय से पके हुए फल के समान अपने आप पतित होने वाले शरीर को चुय (च्युत) शरीर, विषादि के द्वारा प्रायु के छिन्न होने पर निर्जीव हुए शरीर को (चइत्त) च्यावितशरीर तथा संलेखना संथारापूर्वक स्वेच्छा से त्यागे गये शरीर को चत्तदेह (त्यक्तशरीर) कहते हैं। भव्यशरीरद्रव्यसंख्या निरूपण 486. से कि तं भवियसरीरदश्वसंखा ? भवियसरीरदश्वसंखा जे जीवे जोणोजम्मणणिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिटेणं भावेणं संखा ति पयं सेकाले सिक्खिस्सति, जहा को दिद्रुतो ? अयं घयफुभे भविस्सति / से तं भवियसरीरदबसंखा। [486 प्र.] भगवन् ! भव्यशरीरद्रव्यसंख्या का क्या स्वरूप है ? [486 उ.] आयुष्मन् ! जन्म समय प्राप्त होने पर जो जीव योनि से बाहर निकला और भविष्य में उसी शरीरपिंड द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार संख्या पद को सीखेगा (वर्तमान में सीख नहीं रहा है) ऐसे उस जीव का वह शरीर भब्यशरीरद्रव्यसंख्या है / [प्र.] इसका कोई दृष्टान्त है ? [उ.] (जैसे घी भरने के लिये कोई घड़ा हो किन्तु अभी उसमें घी नहीं भरा हो तो उसके लिये कहना) यह घृतकुंभ-घी का घड़ा होगा। यह भव्यशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है। विवेचन—सूत्र में भव्यशरीरद्रव्यसंख्या (शंख) का स्वरूप बताया है। यह भविष्यकालीन योग्यता की अपेक्षा जानना चाहिये / पर्यायाथिकनय की अपेक्षा भावी पर्याय की मुख्यता से यह भेद बनता है। ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यशंख 487. से कि तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दग्वसंखा ? जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दब्वसंखा तिविहा पण्णत्ता / तं जहा–एगभविए बद्धाउए अभिमुहणामगोत्ते य। [487 प्र.] भगवन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरी रब्यतिरिक्त द्रव्यशंख का क्या स्वरूप है ? [487 उ. आयुष्मन् ! ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यशंख के तीन प्रकार हैं१. एकभविक, 2. बदायुष्क और 3. अभिमुखनामगोत्र / विवेचन इस सूत्र में ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तनोमागमद्रव्यशंख का भेदमुखेन स्वरूप बतलाया है। संक्षेप में इसके लिये 'तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्य' शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। एकभाविक आदि का आशय-जिस जीव ने अभी तक शंखपर्याय की आयु का बंध नहीं किया है, परन्तु मरण के अनन्तर शंखपर्याय प्राप्त करने वाला है उसे एकभविक कहते हैं। जिस जीव ने शंखपर्याय में उत्पन्न होने योग्य प्रायु का बंध कर लिया है, ऐसा जीव बद्धायुष्क कहलाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553