________________ 352] [अनुयोगद्वारसूत्र हजार कोडाकोडी, छहसौ कोडाकोडी, तेतालीस कोडाकोडी, सैतीस लाख कोडी, उनसठ हजार कोडी, तीनसौ कोडी, चौपन कोडी, उनतालीस लाख पचास हजार तीनसी छत्तीस / इसी संख्या को प्रकारान्तर से समझाया गया है कि मनुष्यों के औदारिकशरोर छियानवै छेदनकदायी प्रमाण हैं। जो आधी-आधी करते-करते छियानवें बार छेदन को प्राप्त हो और अंत में एक बच जाये, उसे छियानवें छेदनकदायीराशि कहते हैं / उसको इस प्रकार समझना चाहियेप्रथम वर्ग (4 संख्या) को छेदने पर दो छेदनक होते हैं, पहला छेदनक दो और दुसरा छेदनक एक / दोनों को मिलाकर दो छेदनक हुए। इसी प्रकार दूसरे वर्ग 16 के चार छेदनक हुए, वह इस प्रकारप्रथम 8, द्वितीय 4, तृतीय 2 और चतुर्थ 1 / तृतीय वर्ग 256 के पाठ छेदनक, चतुर्थ वर्ग के 16 छेदनक, पांचवें वर्ग के 32 और छठे वर्ग 64 छेदनक हुए। इस प्रकार पांचवें और छठे वर्ग के छेदनकों का योग करने पर कुल 96 छेदनक होते हैं। यह छियानवें छेदनकदायी राशि है / अथवा एक के अंक को स्थापित करके उत्तरोत्तर उसे छियानवै बार दुगुना-दुगुना करने पर हो वह राशि छियानवै छेदनकदायीराशि कहलाती है / इस छियानवे छेदनकायी राशि का परिमाण उतना ही होगा, जिसे छठे वर्ग से गुणित पंचम वर्ग की राशि के प्रसंग में बताया गया है। यह जधन्यपद में मनुष्यों की संख्या का प्रमाण है। जघन्यपद में मनुष्यों की संख्या उक्त प्रमाण वाली संख्यात है। अतएव उतने ही मनुष्यों के जघन्य पदवर्ती बद्धऔदारिकशरीर जानना चाहिये। उत्कृष्ट पद में मनुष्यों की संख्या पीर उनके बद्ध औदारिकशरीरों का प्रमाण इस प्रकार है-उत्कृष्ट पद में मनुष्यों की संख्या असंख्यात है। जो संमूच्छिम मनुष्यों की संख्या की अपेक्षा पाई जाती है। जब संमूच्छिम मनुष्य पैदा होते हैं तब वे एक साथ अधिक से अधिक असंख्यात होते हैं। असंख्यात संख्या के असंख्यात भेद हैं / इन भेदों में से जो असंख्यात संख्या मनुष्यों के लिये मानी है, उसका परिचय यहाँ काल और क्षेत्र दोनों प्रकारों से दिया गया है। ___ मनुष्यों के मुक्त औदारिकशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्त औदारिकशरीरों के समान अनन्त है। मनुष्यों के बद्ध वैक्रियशरीर संख्यात हैं, क्योंकि वैक्रिपलब्धि गर्भज मनुष्यों में ही होती है और वह भी किसी किसी में, सब में नहीं / कालत: इस संख्यात का प्रमाण इस प्रकार है-एक-एक समय में एक-एक वैक्रियशरीर का अपहार किया जाए तो संख्यात उत्सर्पिणी-अक्सपिणी काल व्यतीत हो जाए। मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्तौदारिकशरीरों जितना अनन्त समझना चाहिये। मनुष्यों के बद्ध आहारकशरीर होते भी हैं और नहीं भी होते हैं। हों तो जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व तक हो सकते हैं / मुक्त आहारकशरीर सामान्य मुक्त आहारकशरीरों जितने हैं। 1. बद्ध-मुक्त माहारकशरीरों का प्रमाण सामान्य बद्ध-मुक्त आहारक शरीरों के प्रसंग में कारण सहित स्पष्ट किया जा चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org