________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [365 446. से कि तं अवयवेणं ? अवयवेणं महिसं सिंगेणं, कुक्कुडं सिहाए, हत्थि विसाणेणं, वराहं दाढाए, मोरं पिच्छेणं, आसं खुरेणं, वग्घं नहेणं, चमरं वालगंडेणं, दुपयं मणूसमाइ, चउपयं गवमादि, बहुपयं गोम्हियादि, सीहं केसरेणं, वसहं ककुहेणं, महिलं बलयबाहाए / परियरबंधेण भडं, जाणिज्जा महि लियं णिवसणेणं / सित्थेण दोणपागं, कई च एक्काए गाहाए / / 116 / / से तं अवयवेणं। |446 प्र.) भगवन् ! अवयव रूप-लिंग से निष्पन्न शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ? |446 उ.। आयुष्मन् ! सींग से महिष का, शिखा से कुक्कुट (मुर्गा) का, दांत से हाथी का, दाढ से वराह (सूअर) का, पिच्छ से मयूर का, खुर से घोड़े कर, नखों से व्याघ्र का, बालों के गुच्छे से चमरी माय का, द्विपद से मनुष्य का, चतुष्पद से गाय आदि का, बहु पदों से गोमिका आदि का, केसरसटा से सिंह का, ककुद (कांधले) से वृषभ का, चूड़ी सहित बाहु से महिला का अनुमान करना / तथा बद्धपरिकरता (योद्धा की विशेष प्रकार की पोशाक) से योद्धा का, वेष से महिला का, एक दाने के पकने से द्रोण-पाक का और एक गाथा से कवि का ज्ञान होना / 116 यह अवयवलिंगजन्य शेषवत्-अनुमान है। 447. से कि तं प्रासएणं ? आसएणं अग्गि धूमेणं, सलिलं बलगाहि, वुटुं अन्नविकारेणं, कुलपुत्तं सीलसमायारेणं / इङ्गिताकारितैज्ञेयः क्रियाभिर्भाषितेन च / नेत्र-वक्त्रविकारैश्च गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः // 117 // से तं आसएणं / से तं सेसवं / [447 प्र.) भगवन् ! प्राश्रयजन्य शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ? [447 उ.} अायुग्मन् ! धूम से अग्नि का, बकपंक्ति से पानी का, अभ्रविकार (मेघविकार) से वृष्टि का और शील सदाचार से कुलपुत्र का तथा शरीर की चेष्टायों से, भाषण करने से और नेत्र तथा मुख के विकार से अन्तर्गत मनआन्तरिक मनोभाव का ज्ञान होना / यह पाश्रयजन्य शेषवत्-अनुमान है / यही शेषवत्-अनुमान है। विवेचन ऊपर शेषवत्-अनुमान का स्वरूप बतलाया है। कार्य से कारण का, कारण से कार्य का, गुण से गुणी का, अवयव से अवयवी का और पाश्रय से तदाश्रयवान् का अनुमान शेषवत्-अनुमान कहलाता है / सूत्र में उदाहरणों द्वारा यह स्पष्ट किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org