________________ facार निरूपण [430 उ.] प्रायुष्मन् ! वर्ष गुणप्रमाण पांच प्रकार का कहा है / यथा-कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत् शुक्लवर्णयुग्नमाण / यह वर्षगुवाप्रमाण का स्वरूप है / 431. से कि तं गंधगुणप्पमाणे? बंधगुणल्पनाने दुव्हेि पणते / सं० ... मुरभिगंधमुणप्पमाणे वुर भिगवण कमाणे य / से तं गंधमुलकमाणे। [431 प्र. भगवन् ! गंधगुणप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [431 उ. आयुष्मन् ! गंधगुणप्रमाण दो प्रकार का है / यथा--सुरभिगंधगुणप्रमाण, दुरभिगंधगुणप्रमाण / इस प्रकार यह गंधगुणप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिए / 432. से कि तं रसगुणप्पमाणे? रसगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते / तं०-तित्तरसगुणप्पमाणे जाव महररसगुणप्पमाणे / से तं रसगुणप्पमाणे। | 432 प्र. भगवन् ! रसगुणप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [432 उ. आयुष्मन् ! रसगुप्पप्रमाण पांच प्रकार का कहा गया है / यथा-तिक्तरसगुणप्रयाण यावत् मधुररसगुणप्रमाण / यह रसगुणप्रमाण का स्वरूप है / / 433. से कि तं फासगुणप्पमाणे ? फासगुणप्पमाणे अट्टविहे पणत्ते / तं0-कक्खडफासगुणप्पमाणे जाव लुक्खफासगुणप्पमाणे। से तं फासगुणप्पमाणे। [433 प्र. भगवन् ! स्पर्शगुणप्रमाण का स्वरूप क्या है ? 433 उ.! आयुष्मन् ! स्पर्शगणप्रमाण पाठ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकारकर्कशस्पर्शगुणप्रमाण यावत् रूक्षस्पर्शगुणप्रमाण / यह स्पर्शगुणप्रमाण है। 434. से कि तं संठाणगुणप्पमाणे? संठाणगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते / तं०-परिमंडलसंठाणमुणप्पमाणे जाव आययसंठाणगुणप्पमाणे / से तं संठाणगुणप्पमाणे / से तं अजीवगुणप्पमाणे। [434 प्र. भगवन् ! संस्थानगुणप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [434 उ.] अायुष्मन् ! संस्थानगुणप्रमाण पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे--परिमंडलसंस्थानगुणप्रमाण यावत् अायतसंस्थानगुणप्रमाण / यह संस्थानगुणप्रमाण का स्वरूप है / इस प्रकार से अजीवगुणप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिये। विवेचन--यहाँ अजीवगुणप्रमाण का कथन किया है। प्रमाण शब्द की व्युत्पत्ति भाक, करुण और कर्म इन तीन साधनों में होती है, यह पहले स्पष्ट किया जा चुका है। भावसाधन पक्ष में गुणों को जानने रूप प्रमिति प्रमाण है / यद्यपि गुण स्वयं प्रमाणभूत नहीं होते हैं किन्तु जानने रूप क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org