________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [353 मनुष्यों के बद्ध-मुक्त तैजस और कार्मण शरीरों का प्रमाण इनके बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरां के प्रमाण जितना है / अर्थात् बद्भ असंख्यात और मुक्त अनन्त हैं / ' वारणव्यंतर देवों के बद्ध-मुक्त शरीर 424. [1] वाणमंतराणं ओरालियसरीरा जहा नेरइयाणं / |424-1 | वाणव्यंतर देवों के प्रौदारिकशरीरों का प्रमाण नारकों के प्रौदारिकशरीरों जैसा जानना चाहिये। [2] वाणमंतराणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरा पन्नत्ता ? गो० ! दुविहा पं० / तं०-बधेल्लया य मुक्केल्लया य / तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहि उस्स प्पिणि-ओसप्पिणीहि अवहोरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखज्जइभागो, तासि णं सेढोणं विक्खं भसूई संखेज्जजोयणसयवग्गलिभागो पतरस्स / मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया। [424-2 प्र.| भगवन् ! वाणव्यंतर देवों के कितने वैक्रियशरीर कहे गये हैं ? 424-2 उ.| गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं-बद्ध और मुक्त / उनमें से बद्धवैक्रिय शरीर मामान्य रूप से असंख्यात हैं जो कान की अपेक्षा असंख्यात उत्सपिणी-अवपिणी कालों में अपहृत होते हैं / क्षेत्रतः प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों जितने हैं। उन श्रेणियों की विष्क भसूची प्रतर के संख्येययोजनशतवर्ग प्रतिभाग (अंश) रूप है / मुक्त क्रियशरीरों का प्रमाण औधिक औदारिकगरीरों की तरह जानना चाहिये / [3] आहारगसरीरा दुविहा वि जहा असुरकुमाराणं / 424-3, दोनों प्रकार के आहारकशरीरों का परिमाण असुरकुमारों के दोनों पाहारकशरीरों के प्रमाण जितना जानना चाहिये / [4] वाणमंतराणं भंते ! केवइया तेयग-कम्मगसरीरा पं० ? गो० ! जहा एएसिं चेव वेउब्वियसरीरा तहा तेयग-कम्मगसरोरा वि भाणियम्वा। [424-4 प्र.| भगवन् ! वाणव्यंतरों के कितने तैजस-कार्मण शरीर कहे हैं ? |424-4 उ. | गौतम ! जैसे इनके वैक्रियशरीर कहे हैं, वैसे ही तेजस-कार्मण शरीर भी जानना चाहिये। विवेचन-वाणव्यंतर देवों के बद्ध-मुक्त शरीरों की प्ररूपणा का स्पष्टीकरण इस प्रकार वाणव्यंतर देवों के औदारिकशरीरों का प्रमाण नारकों के औदारिकशरीरों के प्रमाण 1. यद्यपि एक मनुष्य के एक साथ चार शरीर तक हो सकते हैं, पाच नहीं। परन्तु यहाँ पांच बद्ध शरीरों की प्ररूपणा की गई है, उसका तात्पर्य यह है कि नाना मनुष्यों की अपेक्षा एक साथ पांच शरीर भी होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org