________________ 220] अनुयोगद्वारसूत्र द्विगुसमास 268. से कि तं दिगुसमासे ? दिगुसमासे तिण्णि कडुगा तिकडुगं, तिणि महुराणि तिमहरं, तिण्णि गुणा तिगुणं, तिण्णि पुरा तिपुरं, तिणि सरा तिसरं, तिण्णि पुक्खरा तिपुक्खरं, तिण्णि बिंदुया तिबिंदुयं, तिण्णि पहा तिपह, पंच पदोओ पंचणदं, सत्त गया सत्तगयं, नव तुरगा नवतुरगं, दस गामा दसगाम, दस पुरा दसपुरं / से तं दिगुसमासे। [298 प्र. भगवन् ! द्विगुसमास किसे कहते हैं ? [298 उ. अायुष्मन् ! द्विगुसमास का रूप इस प्रकार का है-तीन कटक वस्तुओं का समूह-त्रिकटुक, तीन मधुरों का समूह-त्रिमधुर, तीन गुणों का समूह --त्रिगुण, नीन पुरों.-- नगरों का समूह-त्रिपुर, तीन स्वरों का समुह--त्रिस्वर, तीन पुष्करों-कमलों का समूह-त्रिपुष्कर, तीन बिन्दुओं का समुह-त्रिबिन्दु, तीन पथ–रास्तों का समूह---त्रिपथ, पांच नदियों का समूह- पंचनद, सात गजों का समूह–सप्तगज, नौ तुरगों-अश्वों का समुह-नवतुरग, दस ग्रामों का समूह--दसग्राम, दस पुरों का समूह-दसपुर, यह द्विगुसमास है। विवेचन–सूत्र में द्विगुस मास के उदाहरण दिये हैं। जिनसे यह प्राशय फलित होता है जिस समास में प्रथम पद संख्यावाचक हो और जिससे समाहार-समूह का बोध होता हो, उसे द्विगुसमास कहते हैं / इसमें दूसरा पद प्रधान होता है, जिससे बहुधा यह जाना जाता है कि इतनी वस्तुओं का समाहार हुआ है / सूत्रोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है। द्विगुसमास की यह विशेषता है कि इसमें नपुंसकलिंग और एकवचन ही आता है, जैसे त्रिकटुकम् / रयसमास में पहला पद सामान्य विशेषण रूप और द्विगुसमास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है / इसलिये ये दोनों समास पृथक्-पृथक् कहे गए हैं। तत्पुरुषसमास 266. से कि तं तप्पुरिसे समासे ? तपुरिसे समासे तित्थे कागो तित्थकागो, वणे हत्थी वणहत्थो, वणे वराहो वणवराहो, वणे महिसो वणमहिसो, वणे मयूरो वणमयूरो / से तं तप्पुरिसे समासे / [299 प्र.] भगवन् ! तत्पुरुषसमास का क्या स्वरूप है ? [299 उ.] अायुष्मन् ! तत्पुरुषसमास का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये-तीर्थ में काक (कौग्रा) तीर्थकाक, वन में हस्ती वनहस्ती, वन में वराह वनवराह, वन में महिष वनमहिष, बन में मयूर वनमयूर / यह तत्पुरुषसमास है। विवेचन---उदाहरणों के द्वारा तत्पुरुषसमास का स्वरूप बताया है। जिसका फलितार्थ यह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org