________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [205 समय की स्थिति वाला (परमाणु या स्कन्ध) प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है। इस प्रकार से प्रदेशनिष्पन्न (अर्थात् काल के निविभाग अंश से निष्पन्न) कालप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिये। 365. से कि तं विभागनिष्फण्णे ? विभागनिष्फण्णे-- समयाऽऽवलिय-मुहुत्ता दिवस-अहोरत्त-पक्ख मासा य / संवच्छर-जुग-पलिया सागर-ओस प्पि-परिअट्टा // 103 // [365 प्र.] भगवन् ! विभागनिष्पन्न कालप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [365 उ.] आयुष्मन् ! समय, पावलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागर, अवसर्पिणी (उत्सर्पिणी) और (पुद्गल) परावर्तन रूप काल को विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहते हैं / 103 विवेचन–प्रस्तुत सूत्रों में कालप्रमाण के मुख्य दो भेदों का उल्लेख किया है / काल के निविभाग अंश (समय) को यहाँ 'प्रदेश' कहा गया है। अतएव इन निविभाग अंशों--- प्रदेशों से निष्पन्न होने वाला कालप्रमाण प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है। एक समय की स्थिति वाला परमाणु या स्कन्ध एक कालप्रदेश से, दो समय की स्थिति वाला परमाणु या स्कन्ध दो कालप्रदेशों से निष्पन्न होता है / इसी प्रकार तीन आदि समय से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले परमाणु या स्कन्ध आदि सब काल के उतने-उतने ही अविभागी अंशों (प्रदेशों) से निष्पन्न होते हैं। असंख्यात अंशों (प्रदेशों) से असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल निष्पन्न होते हैं। इससे आगे पुद्गलों की एक रूप से स्थिति ही नहीं होती है, अर्थात् पुद्गल पर्याय की अधिक से अधिक स्थिति असंख्यात काल की ही होती है। समय, पावलिका आदि रूप काल विभागात्मक होने से वे विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहलाते हैं। विभागनिष्पन्न कालप्रमाण की प्राद्य इकाई 'समय' है। अतः अब उसी का विस्तार से वर्णन किया जाता है। समयनिरूपण 366. से कि तं समए ? समयस्स णं परूवणं करिस्सामि-से जहाणामए तुण्णागदारए सिया तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पातके थिरगहत्थे दढपाणिपायपासपिठेतरोरुपरिणते तलजमलजुयलपरिघणिभवाहू चम्मेदृग-दुहण-मट्टियसमाहय निचियगत्तकाये लंघण-पवण-जइणवायामसमत्थे उरस्सबलसमण्णागए छए दक्खे पत्तो कुसले मेहावी निउणे निउणसिप्पोवगए एगं महति पडसाडियं वा पट्टसाडियं वा गहाय सयराहं हत्थमेत्तं ओसारेज्जा। तत्य चोयए पण्णवयं एवं वयासो__ जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा सयराहं हत्थमेते ओसारिए से समए भवइ ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org