________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] ___376. केवतिया णं भंते ! दीव-समुद्दा उद्धारेणं पन्नत्ता ? गो० ! जावइया णं अडाइज्जाणं उद्धारसागरोक्माणं उद्धारसमया एवतिया णं दीव-समुद्दा उद्धारेणं पण्णत्ता / से तं सुहमे उद्धारपलिओवमे / से तं उद्धारपलिओवमे / [376 प्र.] भगवन् ! कियत्प्रमाण द्वीप-समुद्र उद्धार प्रमाण से प्रतिपादन किये गये हैं ? [३७६.उ] गौतम ! अढ़ाई उद्धार सूक्ष्म सागरोपम के उद्धार समयों के बराबर द्वीप समुद्र हैं। यही सूक्ष्म उद्धारपल्योपम का और साथ ही उद्धारपल्योपम का स्वरूप है / विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों में सूक्ष्म उद्धार पल्योपम और सागरोपम का कालमान एवं उसका प्रयोजन बतलाया है। यद्यपि व्यावहरिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम के वर्णन से यह कतिपय अंशों में मिलता-जुलता है, लेकिन नाशिक भिन्नता भी है और वह इस प्रकार कि सूक्ष्म पल्योपम का प्रमाण निर्देश करने के लिये जो एक से सात दिन तक के बालान लिये गये हैं, उनके ऐसे खंड किये जाएँ जो निर्मल चक्षु से देखने योग्य वस्तु की अपेक्षा भी असंख्यातवें भाग हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यात गुण प्रमाण हों। उनको प्रत्येक समय निकालने पर जितना काल व्यतीत हो वह कालप्रमाण एक सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहलाता है और जब दस कोटाकोटी प्रमाण पल्य खाली हो जाएं तब एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम काल होता है। इसके प्रतिपादन करने का मुख्य प्रयोजन यह बतलाना है कि अढाई उद्धारसागरोपमों अर्थात् पच्चीस सूक्ष्म उद्धारपल्योपमों में से बालाग्न खंडों को उद्धृत करने निकालने में जितने समय लगते हैं, उतने द्वीप-समुद्र हैं / प्रद्धापल्योपम-सागरोपमनिरूपरण 377. से कि तं अद्धापलिओवमे? अद्धापलिओवमे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-सुहमे य वावहारिए य / [377 प्र.] भगवन् (पल्योपम प्रमाण के द्वितीय भेद) अद्धापल्योपम का क्या स्वरूप है ? [377 उ.] अाधुग्मन् ! अद्धापल्योपम के दो भेद हैं—१. सूक्ष्म अद्धापल्योपम और 2. व्यावहारिक प्रद्धापल्योपम / / 378. तत्थ णं जे से सुहमे से ठप्पे / 379. तत्थ णं जे से वावहारिए से जहानामए पल्ले सिया जोयणं विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिवखेदेणं, से णं पल्ले एगाहिय-बेहिय-तेहिय जाव भरिये वालग्गकोडोणं / ते णं वालागा नो अग्गी डहेज्जा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हबमागच्छेज्जा / ततो णं वाससते वाससते गते एगमेगं वालम्ग अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खोणे नोरए निल्लेवे निट्टिए भवति, से तं वावहारिए अद्धापलिओबने। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org