________________ 262] अनुयोगद्वार सूत्र तमःप्रभापृथ्वी में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है / उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष है। [6] तमतमापुढविनेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नता / तं जहा-भवधारणिज्जा य 1 उत्तरवेउम्विया य 2 / तत्थ गं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पंच धणसयाई। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउन्विया सा जहन्नेणं अंगलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं धणुसहस्स। [347.6 प्र.] भगवन् ! तमस्तम पृथ्वी के नैरयिकों की शरीरावगाहना कितनी बड़ी निरूपित की गई है ? [347-6 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार की कही है.--१. भवधारणीय और 2. उत्तरवैक्रिय रूप / उनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की है तथा उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार धनुष प्रमाण है। विवेचन---प्रस्तुत सूत्र में विशेषापेक्षया सातों नरकपृथ्वियों के नैरयिकों की भवधारणीय एवं उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना की प्ररूपणा की गई है। सातों पृथ्वियों में बताई गई उत्कृष्ट भवधारणीय अवगाहना उन-उन पृथ्वियों के अन्तिम प्रस्तरों में होती है / भवधारणीय उत्कृष्ट अवगाहना से उत्तरवैक्रिय अवगाहना का प्रमाण सर्वत्र दूना जानना चाहिये। दिगम्बर साहित्य में भी नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना का प्रमाण यहाँ बतलाए गए प्रमाण के समान ही है / पृथक्-पृथक् प्रस्तरों की अपेक्षा किया गया पृथक्-पृथक् निर्देश इस प्रकार है---- प्रस्तर प्रथम पृ. द्वि. पृथ्वी तृ. पृथ्वी चतु. पृथ्वी पंचम पृथ्वी षष्ठ पृथ्वी सप्तम पृथ्वी संख्या ध. र. अं.* ध. र. अं. ध. र. अं. ध. र. अं. ध. र. अं. ध. र. अं. ध, र. अं. 1. 0,3, 0 8,2,210 17,1,103 35,2,200 75,0,0 166,2,16 500,0,0' 2. 1,1,83 9,0,224 19,0,93 40,0,17, 87,2,0 208,1,8 3. 1,3,17 9,3,1819 20,3, 8 4 4,2,134 100,0, 250,1, 4. 2,2,13 10,2,142 22,2,63 49,0,103 112,2,0 5. 3,0,10 11,1.1021 24,1,57 53,2,66 125,0,0 1. प्राधार -तिलोयपण्णत्ति 2/217-270, राजवार्तिक 3/3 * संकेत-ध. धनुष, र- रत्ति (हाथ), अं. अंगुल (गणना-१ धनुष == 4 हाथ, 24 अंगुल) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org