________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [261 उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष और एक रत्नि है। [4] वालुयपभापुढवीए णेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? . गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -भवधारणिज्जा य 1 उत्तरवेविया य 2 / तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं एक्कतोसं धणूई रयणी य। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउन्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं बार्टि धणूई दो रयणीयो य / [347-4 प्र.] भगवन् ! बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी बड़ी प्रतिपादन की गई है ? [347-4 उ.] गौतम ! उनकी शरीरावगाहना दो प्रकार से प्रतिपादन की गई हैं। यथा१. भवधारणीय और 2. उत्तरवैक्रिय / इन दोनों में से प्रथम भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष तथा एक रत्ति प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रनि प्रमाण है। [5] एवं सवासि पुढवीणं पुच्छा भाणियवा-पंकप्पभाए भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं बासट्टि धणई दो रयणीओ य, उत्तरवेउन्विया जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पणुवीसं धणुसयं / धमप्पभाए भवधारगिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पणुवीसं धणुसयं, उत्तरवेउब्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं अड्डाइम्जाई धणुसयाई। तमाए भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं अड्डाइज्जाई घणुसपाई, उत्तरवेउन्चिया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पंच धणुसयाई। {347-5] इसी प्रकार समस्त पृथ्वियों के विषय में अवगाहना सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिये। उत्तर इस प्रकार है पंकप्रभापृथ्वी में भवधारणीय जघन्य अवमाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रत्ति प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। धूमप्रभापृथ्वी में भवधारणीय जघन्य (शरीरावगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ (दो सौ पचास) धनुष प्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org