________________ 246] अनुयोगद्वारमूव __335. एतेणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाई पादो, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थोप्रो रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीनो दंडं धण जुगे नालिया अक्ख-मुसले, दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं / [335] इस आत्मांगुल से छह अंगुल का एक पाद होता है / दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति की एक रत्ति और दो रत्नि की एक कुक्षि होती है। दो कुक्षि का एक दंड, धनुष, युग, नालिका अक्ष और मूसल जानना चाहिये / दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है / विवेचन-इन दो सूत्रों में अंगुल के तीन प्रकारों में से प्रथम प्रात्मांगुल के स्वरूप आदि का वर्णन किया है। अात्मांगुल में 'यात्मा' शब्द 'स्व' अर्थ का सूचक है / अतएव अपना जो अंगुल उसे आत्मांगुल कहते हैं / यह कालादि के भेद से अनवस्थित प्रमाण वाला है / इसका कारण यह है कि उत्सपिणी और अवपिणी काल के भेद से मनुष्यों के शरीर की ऊंचाई आदि बढ़ती-घटती रहती है / अतएव जिस काल में जो पुरुष होते हैं, उस काल में उनका अंगुल आत्मागुल कहलाता है / इसी अपेक्षा से अात्मांगुल को अनियत प्रमाण वाला कहा है। ___ प्रात्मांगुल से नापने पर बारह अंगुल का जितना प्रमाण हो उसकी 'मुख' यह संज्ञा है / ऐसे नौ मुखों अर्थात् एक सौ आठ अंगुल ऊंचाई वाला पुरुष प्रमाणपुरुष कहलाता है। दूसरे प्रकार से भी प्रमाणयुक्त पुरुष की परीक्षा करने के कुछ नियम बताये हैं-एक बड़ी जलकुंडिका को जल से परिपूर्ण भरकर उसमें किसी पुरुष को बैठाने पर जब द्रोणप्रमाण जल उससे छलक कर बाहर निकल जाये तो वह पुरुष मानयुक्त माना जाता है और उस पुरुष की द्रोणिकपुरुष यह संज्ञा होती है। अथवा द्रोणपरिमाण न्यून जल से कुंडिका में पुरुष के प्रवेश करने पर यदि वह कंडिका पूर्ण रूप से किनारों तक भर जाती है तो ऐसा पुरुष भी मानयुक्त माना जाता है। तीसरी परीक्षा यह है कि तराज से तौलने पर जो पुरुष अर्धभारप्रमाण वजनवाला हो, वह पुरुष उन्मान से प्रमाणयुक्त माना जाता है / ऐसे पुरुष लोक में उत्तम माने जाते हैं। ये उत्तम पुरुष प्रमाण, मान और उन्मान से संपन्न होने के साथ ही शरीर में पाये जाने वाले स्वस्तिक, श्रीवत्स ग्रादि शुभ लक्षणों तथा तिल, मसा प्रादि व्यंजनों से युक्त होते हैं। इनका जन्म लोकमान्य कुलों में होता है। वे उच्चगोत्रकर्म के विपाकोदय के कारण लोक में आदर-समान के पात्र माने जाते हैं, प्राज्ञा, ऐश्वर्य, संपत्ति से संपन्न-समृद्ध होते हैं / उपर्युक्त माप-तौल से हीन पुरुषों की गणना मध्यम अथवा जघन्य पुरुषों में की जाती है / सूत्रोक्त उत्तम पुरुष के मानदंड को हम प्रत्यक्ष भी देखते हैं / सेना और सेना के अधिकारियों का चयन करते समय व्यक्ति को ऊंचाई, शारीरिक क्षमता, साहस अादि की परीक्षा करने पर निर्धारित मान में उत्तीर्ण व्यक्ति का चयन कर लिया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org