________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [247 इस प्रकार से आत्मांगुल की व्याख्या करने के पश्चात् उसका उपयोग कहाँ और किस के नापने में किया जाता है, इसे स्पष्ट करते हैं / आत्मांगुल का प्रयोजन 336. एएणं पायंगुलप्पमाणेणं किं पओयणं? एतेणं आयंगुलप्पमाणे जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं अगड-दहनदी-तलाग-वावो-पुरिणि-दोहिया-गुजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुज्जाण-काणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल-सभा-पवा-थूभ-खाइय-परिहाओ पागारअट्टालग-चरिय-दार-गोपुर-तोरण-पासाद-घर-सरण-लेण-आवण-सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर- चउमुहमहापह-पहा सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणिय-लोही-लोहकडाह-कडुच्छ्य-आसण. सतण-खम-भंड-मत्तोवगरणमादीणि अज्जकालिगाइं च जोयणाई मविज्जति / [336 प्र.] भगवन् ! इस आत्मांगुलप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? [336 उ.] आयुष्मन् ! इस आत्मांगुलप्रमाण से कुया, तडाग (तालाब), द्रह (जलाशय), वापी (चतुष्कोण बाली बावड़ी), पुष्करिणी (कमलयुक्त जलाशय), दीपिका (लम्बी-चौड़ी बावड़ी), गुजालिका (वक्राकार बावड़ी), सर (अपने-आप बना जलाशय---झील), सरपंक्ति (श्रेणी--पंक्ति रूप में स्थित जलाशय), सर-सरपंक्ति (नालियों द्वारा संवन्धित जलाशयों की पंक्ति), विलपंक्ति (छोटे मुख वाले कूपों की पंक्ति----कुंडियां), पाराम (बगीचा), उद्यान (अनेक प्रकार के पुष्प-फलों वाले वृक्षों से युक्त बाग), कानन (अनेक वृक्षों से युक्त नगर का निकटवर्ती प्रदेश), वन (जिसमें एक ही जाति के वृक्ष हों), वनखंड (जिसमें अनेक जाति के उत्तम वृक्ष हों), वनराजि (जिसमें एक या अनेक जाति के वृक्षों की श्रेणियां हों), देवकुल (यक्षायतन प्रादि), सभा, प्रपा (प्याऊ), स्तूप, खातिका (खाई), परिखा (नीचे संकड़ी और ऊपर विस्तीर्ण खाई), प्राकार (परकोटा), अट्टालक (परकोटे पर बना आश्रय-विशेष—अटारी), चरिका(खाई और प्राकार के बीच बना आठ हाथ चौड़ा मार्ग), द्वार, गोपुर (नगर में प्रवेश करने का मुख्य द्वार), तोरण, प्रासाद (राजभवन), घर (सामान्य जनों के निवास स्थान), शरण (घास-फस से बनी झोपडी), लयन (पर्वत में बनाया गया निवासस्थान), आपण (वाजार), श्रृगाटक (सिंघाड़े के आकार का त्रिकोण मार्ग), त्रिक (तिराहा), चतुष्क (चौराहा), चत्वर (चौगान, चौक, मैदान), चतुर्मुख (चार द्वार वाला देवालय आदि), महापथ (राजमार्ग), पथ (गलियां), शकट (गाड़ी, बैलगाड़ी), रथ, यान (साधारण गाड़ी), युग्य (डोली–पालखी),,गिल्लि (हाथी पर रखने का हौदा), थिल्लि (यान-विशेष, बहली), शिविका (पालखी), स्यंदमानिका (इक्का), लोही (लोहे की छोटी कड़ाही), लोहकटाह (लोहे की बड़ी कड़ाही--कड़ाहा), कुडछी (चमचा), ग्रासन (बैठने के पाट आदि), शायन(शय्या), स्तम्भ, भांड (पात्र प्रादि) मिट्टी, कांसे आदि से बने भाजन गृहोपयोगी वर्तन, उपकरण आदि वस्तुओं एवं योजन आदि का माप किया जाता है। विवेचन—सूत्रोक्त भवनादि का निर्माण मनुष्य अपने समय को ध्यान में रखकर करते हैं। इसीलिये सत्र में मनुष्यों द्वारा बनाई गई एवं प्रशाश्वत बस्तुओं की लम्बाई चौड़ाई-ऊंचाई प्रादि का माप आत्मांगुल से किये जाने का उल्लेख किया गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org