________________ 224] [अनुयोगहारसूत्र चित्र बनाने वाला शिल्पी, दंतकारिए-दान्तकारिक-दांत वनाने वाला शिल्पी, लेप्पकारिएलैप्यकारिक-मकान बनाने वाला शिल्पी, सेलकारिए-शैलकारिक-पत्थर घड़ने वाला शिल्पी, कोट्टिमकारिए-कौट्टिमकारिक-खान खोदने वाला शिल्पी / श्लोकनाम 305. से किं तं सिलोयनामे ? सिलोयनामे समणे माहणे सन्चातिही। से तं सिलोयनामे / [305 प्र.] भगवन् ! श्लोकनाम किसे कहते हैं ? [305 उ.] प्रायुष्मन् ! सभी के अतिथि श्रमण, ब्राह्मण श्लोकनाम के उदाहरण हैं / विवेचन-सूत्र में उदाहरण द्वारा इलोकनाम की व्याख्या की है / जिसका आशय यह है-- श्लोक अर्थात् यश के अर्थ में तद्धित प्रत्यय होने पर निष्पन्न होने वाला नाम श्लोकनाम है / उदाहरण रूप श्रमण और ब्राह्मण शब्दों में 'अर्शादिभ्योऽच' सूत्र द्वारा प्रशस्तार्थ में मत्वर्थीय 'अच्' प्रत्यय हुया है और तपश्चर्यादि श्रम से युक्त होने से श्रमण और ब्रह्म (आत्मा) के पाराधक होने से ब्राह्मण प्रशस्त सभी के अतिथि-~-संमाननीय माने जाने से श्लोकनाम के उदाहरण हैं। संयोगनाम 306. से किं तं संजोगनामे ? संजोगनामे रणो ससुरए, रणो सालए, रणो सड्ढुए, रणो जामाउए, रन्नो भगिणीवतो। से तं संजोगनामे। [306 प्र.] भगवन् ! संयोगनाम किसे कहते हैं ? [306 उ.] आयुष्मन् ! संयोगनाम का रूप इस प्रकार समझना चाहिये-राजा का ससुर-राजकीय ससुर, राजा का साला-राजकीय साला, राजा का साढू-राजकीय साटू, राजा का जमाई राजकीय जमाई (जामाता), राजा का बहनोई-- राजकीय बहनोई इत्यादि संयोगनाम हैं। विवेचन--सूत्र में संबन्धार्थ में तद्धित प्रत्यय लगाने से निष्पन्न संयोगनामों का उल्लेख है। सूत्र में तो 'रण्णो ससुरए' इत्यादि विग्रह मात्र दिखलाया है। जिनका अर्थ यह हुआ---राज्ञः अयं राजकीयः श्वसुरः इत्यादि / इन प्रयोगों में 'राज्ञः कच्' इस मूत्र से राजन् शब्द में 'छ' प्रत्यय होकर 'छ' को 'इय्' प्रत्यय हुअा है / इसलिये ये और इसी प्रकार के अन्य नाम संयोगनिष्पन्न तद्धितज नाम जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org