________________ [अनुयोगद्वारसूत्र (द्वितीय चतुर्भगी) 1. प्रानुपूर्वी--अवक्तव्यक, 4. आनुपूर्वी--अनानुपूर्वियां-- 2. आनुपूर्वी अनेक प्रवक्तव्यक, अनेक अवक्तव्यक, 3. पानुपूर्वियां--प्रवक्तव्यक, 5. आनुपूर्वियां अनानुपूर्वी-- 4. यानुपूर्वियां अनेक प्रवक्तव्यक, प्रवक्तव्य। 6. ग्रानुपूर्विया-अनानुपूर्वी, (तृतीय चतुभंगी) अनेक प्रवक्तव्यक, 1. अनानुपूर्वी -अवक्तव्यक, 7. प्रानुपूवियां—अनानुपूर्विया 2. अनानुपूर्वी अनेक -प्रवक्तव्यक ग्रवक्तव्यक 8. प्रानुपूर्तियां --अनानुवियां 3. अनानुपूवियां—प्रवक्तव्यक, - अनेक प्रवक्तव्यक / 4. अनानुर्वियां अनेक अवक्तव्यक। कुल मिलाकर बारह भंग होते हैं। इन भंगों का समुत्कीर्तन-वर्णन इसलिये किया जाता है कि असंयोगी छह और संयोगज बीस भंगों में से बक्ता जिस भंग से द्रव्य की विवक्षा करना चाहता है, वह उस भंग से विवक्षित द्रव्य को कहे / इसी कारण यहाँ नैगम-व्यवहारनयसंमत समस्त भंगों का कथन करने के लिये इन भंगों का समुत्कीर्तन किया है। 102. एयाए णं णेगम-ववहाराणं मंगसमुक्कित्तणयाए कि पओयणं ? एयाए णं अंगम-बवहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए भंगोवदसणया कोरइ / [102 प्र.] भगवन् ! इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है ? [102 उ.] अायुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का प्रयोजन यह है कि उसके द्वारा भंगोपदर्शन-भंगों का कथन किया जाता है। विवेचन.....सूत्र में समुत्कीर्तन का प्रयोजन बताया है / यद्यपि भंगसमुत्कीर्तन और भंगोपदर्शन का आशय स्थूल दृष्टि से एक जैसा प्रतीत होता है, लेकिन शब्दभेद से अर्थभेद होने के न्यायानुसार दोनों में अंतर है / वह इस प्रकार---भंगसमुत्कोर्तन में तो भंगों का नाम और वे कितने होते हैं, यह बतलाते हैं और भंगोपदर्शन में उनका त्र्यणुक आदि वाच्यार्थ कहा जाता है। क्योंकि वाचकसूत्र के कथन के बिना वाच्य रूप अर्थ का कथन करना असंभव है। इसलिये भंगोपदर्शनता, भंगसमुत्कीर्तनता का फल जानना चाहिये / अर्थात् भंगसमुत्कीर्तनता कारण है और भंगोपदर्शन उसका कार्य है। नैगम-व्यवहारनयसम्मत भगोपदर्शनता 103. से कि तं गम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? णेगम-बबहाराणं भंगोवदंसणया तिपदेसिए आणुपुत्वी 1 परमाणुपोग्गले अणाणुपुवी 2 दुपदेसिए अवत्तव्वए 3 तिपदेसिया आणुपुत्वीओ 4 परमाणुपोग्गला अणाणुपुम्बीओ 5 दुपदेसिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org